एक
धोखा ... और मुझको ... दीजिये ... मेरे हुज़ूर...
फेंकिये
फिर .. वो ही पांसा …. फेंकिये मेरे हुज़ूर ;
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ज़ख्म
तो सारे हैं सूखे …. दाग़ भी दिखते नहीं ...
चोट
दिल पर .. इक नई तो .. कीजिये मेरे हुज़ूर ;
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आप
कहते थे ... नशा गहरा है ... आँखों में मेरी ..
डूब
के फिर ... आइये पी ... लीजिये मेरे हुज़ूर ;
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क्यूँ
तकल्लुफ़ हो रहा है .. आपको समझी न .. मैं...
वो
पुराना खेल .... फिर से .... खेलिये मेरे हुज़ूर ;
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ज़ब्त
की चिंता न कीजे ... है बहुत इफ़रात वो...
आप
तो बेख़ौफ़ नश्तर ..... मांजिए मेरे हुज़ूर ;
(इफ़रात—प्रचुरता / plenty)
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आप
हैं मासूम ... हम ये जानते तो ... खूब हैं...
चुप
हैं हम अबतो .. ज़रा सा बोलिये .. मेरे हुज़ूर ;
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एक
भी छींटा कभी ... पड़ने न देंगे ... आप पर...
रूह
के बस दाग़ को .. धो लीजिये .. मेरे हुज़ूर ...!!
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..........................................................................'तरुणा'...!!!
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Ek dhokha
... aur mujhko .. deejiye ..... mere huzoor ..
Fenkiye
phir .. wo hi paansa .. fenkiye .. mere huzoor ;
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Zakhm to
saare hain sookhe ... daag bhi dikhte nahi ..
Chot dil
par .. ik nayi to .... keejiye ... mere
huzoor ;
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Aap kahte
the .. nasha gehra hai ... aankhon me meri …
Doob ke
phir ..... aaiye pee leejiye ..... mere
huzoor ;
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Kyun
taklluf ho raha hai .... aapko samjhi na ... main...
Wo purana
khel ... phir se .... kheliye mere
huzoor ;
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Zabt ki
chinta na keejey …. hai bahut ifraat wo …
Aap to
bekhauf nashtar ... Maanjiye mere huzoor
;
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Aap hain
maasoom ... ham ye jaante to ... khoob hain...
Chup hai
ham ab to … zara sa boliye .. mere
huzoor ;
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Ek bhi
chheenta kabhi .. padne na denge ... aap
par ..
Rooh ke
bas daag ko ….. dho leejiye ... mere huzoor ..!!
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...................................................................................'Taruna'..!!!
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