Saturday, July 4, 2015

एक धोखा ....!!!


एक धोखा ... और मुझको ... दीजिये ... मेरे हुज़ूर...
फेंकिये फिर .. वो ही पांसा …. फेंकिये मेरे हुज़ूर ;
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ज़ख्म तो सारे हैं सूखे …. दाग़ भी दिखते नहीं ...
चोट दिल पर .. इक नई तो .. कीजिये मेरे हुज़ूर ;
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आप कहते थे ... नशा गहरा है ... आँखों में मेरी ..
डूब के फिर ... आइये पी ...  लीजिये  मेरे हुज़ूर ;
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क्यूँ तकल्लुफ़ हो रहा है .. आपको समझी न .. मैं...
वो पुराना खेल .... फिर से .... खेलिये मेरे हुज़ूर ;
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ज़ब्त की चिंता न कीजे ... है बहुत इफ़रात वो...
आप तो बेख़ौफ़ नश्तर ..... मांजिए मेरे हुज़ूर ;
(इफ़रातप्रचुरता / plenty)
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आप हैं मासूम ... हम ये जानते तो ... खूब हैं...
चुप हैं हम अबतो .. ज़रा सा बोलिये .. मेरे हुज़ूर ;
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एक भी छींटा कभी ... पड़ने न देंगे ... आप पर...
रूह के बस दाग़ को .. धो लीजिये .. मेरे हुज़ूर ...!!
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..........................................................................'तरुणा'...!!!
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Ek dhokha ... aur mujhko .. deejiye ..... mere huzoor ..
Fenkiye phir .. wo hi paansa .. fenkiye .. mere huzoor ;
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Zakhm to saare hain sookhe ... daag bhi dikhte nahi ..
Chot dil par .. ik nayi to  .... keejiye ... mere huzoor ;
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Aap kahte the .. nasha gehra hai ... aankhon me meri …
Doob ke phir  ..... aaiye pee leejiye ..... mere huzoor ;
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Kyun taklluf ho raha hai .... aapko samjhi na ... main...
Wo purana khel ... phir se  .... kheliye mere huzoor ;
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Zabt ki chinta na keejey  ….  hai bahut ifraat wo …
Aap to bekhauf nashtar ...  Maanjiye mere huzoor ;
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Aap hain maasoom ... ham ye jaante to ... khoob hain...
Chup hai ham ab to  … zara sa boliye  .. mere huzoor ;
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Ek bhi chheenta kabhi  .. padne na denge ... aap par ..
Rooh ke bas daag ko ….. dho leejiye ... mere huzoor ..!!
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...................................................................................'Taruna'..!!!









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