Tuesday, January 20, 2015

आए वो फिर... !!!




एक क़तरा अश्क़ का वो .. फिर बहाने ..आ गए...
ज़ख्म अपना फिर पुराना .. वो दिखाने.. आ गए ;
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जो कभी कहते .. खड़े होगे न तुम अब .. उमर भर..
हम संभल पाये जरा जो .. फिर गिराने .. आ गए ;
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ग़ैर है जब .. ग़ैर बन के .. वो नहीं क्यूँ .. हैं मिले...
वक़्त या बेवक्त .. हमको .. आज़माने आ गए ;
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जिंदगी भर जो कभी ... खुलके न पल भर ..को हंसे
जब कहीं आंसू दिखे तो .. मुस्कुराने .. आ गए ;
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क़ायदे सारे किए ... तजवीज़ जब ... मेरे लिए...
हाय..! मौक़ा देख के मरहम लगाने .. आ गए ;
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प्यार का अब.. नाम भी ... तकलीफ़ देता .. है मुझे...
क्यूँ ग़ज़ल वो .. इश्क़ की तुम .. गुनगुनाने.. आ गए ;
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जब यही करना .. उसे था क्यूँ कहर बरपा किया ..

जो थे गुज़रे .. याद 'तरु' को ... वो ज़माने आ गए ... !!
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Ek qatra ashq ka wo ... phir bahane aa gaye..
Zakhm apna phir purana ... wo dikhane aa gaye ;
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Jo kabhi  .. khade n hoge tum ..ab umr bhar..
Ham jo sambhle the zara sa .. phir giraane aa gaye ;
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Gair hain jab .. gair ban ke.. wo nahi kyun ..hain mile..
Waqt  ya bewaqt ..  hamko.. aazmaane aa gaye;
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Zindgi bhar jo kabhi .. khul ke na pal bhar  ...ko hanse..
Jab kahin  aanso  dikhe to.... muskuraane aa gaye ;
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Qaayde saare kiye .. tajweez jab ..  mere liye...
Haay!..  mauqa dekh ke... marham lagane aa gaye ;
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Pyaar ka ab naam bhi ... takleef deta hai mujhe ..
Kyun ghazal wo ishq ki tum... gungunaane aa gaye ;
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Jab yahi karna use tha..... kyun kahar barpa kiya...
Jo the guzre yaad 'Taru' ko .. wo zamane aa gaye ..!!

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......................................................................................'Taruna'...!!!

Sunday, January 18, 2015

एक ग़ज़ल लिख दूं...!!!



कैसे ग़ज़ल ... कोई लिखूं मैं ...??
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रोज़ ही मैं अल्फाज़... सजाऊं...
भाव मैं उनमे .. भर न पाऊं ..
सारे ज़ज्बे ... सूख गए हैं....
बहर में उसको कैसे ... गाऊं..?
शेर ..ग़ज़ल के कैसे गढ़ूं मैं...?
कैसे ग़ज़ल ... कोई लिखूं मैं...??
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भूख की आग में ... कभी जली ना..
खुले आकाश में.. कभी पली ना..
प्यास क्या होती .. कभी ना जाना..
अंगारों पर कभी ... चली ना...
झूठी बात को .. कैसे कहूं मैं..?
कैसे ग़ज़ल ... कोई लिखूं मैं...??
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दिल का दर्द ना... समझूं जब तक..
सर्दी-गर्मी .... सहूं ना तब तक...
किसी मुफ़लिस की .. लाचारी को ..
जब तक ना.. पहचानूं तब तक....
कैसे उनकी बात  .. करूं मैं.. ?
कैसे ग़ज़ल ... कोई लिखूं मैं...??
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देश पे मर ... जातें हैं कैसे...?
पीते हैं  .. आंसू को .. कैसे...?
त्याग.. प्यार में करते कैसे ..?
दर्द में दूजे ... जीते कैसे .. ?
जानूं न तो  .. कैसे कहूं मैं..?
कैसे ग़ज़ल ... कोई लिखूं मैं...??
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सीख रही हूं ... जीवन जीना...
भूख..प्यास और दुःख को सहना..
पर-पीड़ा में .. रोती हूं अब...
प्रेम में सीखा... बहते रहना...
क्या लिख डालूं ..... कोई ग़ज़ल में..?
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आज लिखती हूँ ... एक ग़ज़ल मैं...
दिल-दुनिया का ... एक कमल मैं....
आज लिखती हूँ ... एक ग़ज़ल मैं...!!
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............................................................'तरुणा'...!!!
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Kaise likhun koi... ghazal main.. ?
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Roz hi main alfaaz..  sajaun...
Bhaav main unme .. bhar na paaun...
zazbe ..  sookh gaye hain ..
Bahar me usko... kaise gaaun ..?
Sher .. ghazal ke kaise gadhun main..?
Kaise likhun koi... ghazal main.. ??
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Bhookh ki aag me  .. kabhi jali na..
Khule aakash me  .. kabhi pali na..
Pyaas kya hoti … kabhi na jana..
Angaaro par …  kabhi chali na...
Jhoothi baat ko …  kaise kahun main..?
Kaise likhun koi... ghazal main.. ?
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Dil ka dard na..  samjhun jab tak...
Sardi-garmi ...  sahun na jab tak...
Kisi muflis ki ..  laachari ko...
Jab tak na .. pehchaaun tab tak..
Kaise unki baat... karun main..?
Kaise likhun koi... ghazal main.. ?
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Desh pe ..  mar jaate  hain kaise..?
Peete hain …  aansoo ko kaise..?
Tyaag ..  pyaar me karte kaise..?
Dard me dooje...  jeete kaise ..?
Jaanu na to ...  kaise kahun main..?
Kaise likhun koi... ghazal main.. ?
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Seekh rahi hoon .. jeewan jeena...
Bhookh .. pyaas aur dukh ko sahna..
Par-peeda me ... roti hoon ab...
Prem me seekha .. bahte rahna...
Kya likh daalun ….  koi ghazal main..?
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Aaj likhti hoon ... ek ghazal main..
Dil-duniya ka  .. ek kamal main..
Aaj likhti hoon ... ek ghazal main..!!
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.......................................................'Taruna'.... !!!




Tuesday, January 13, 2015

वही पुरानी बात.... !!!




आज क़िस्सा है वही ... फिर वही कहानी है....
आँख में है नमी और .. दिल में इक रवानी है ;
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कौन ये चुपके से ..कानों में .. कह गया मुझसे..
हर तरफ़ है वही और .... उसकी ही बयानी है ;
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ना हो उम्मीद कोई ... न ही हौसला हो कोई...
काम आए न किसी के ... तो क्या जवानी है ?
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कौन दुनिया में है ऐसा ... जिसे ना दर्द मिला ...
फिर भी ख़ुशियाँ हमें इसमें से .. कुछ चुरानी है ;
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काम दिल से करो .. और प्यार करो हर एक से..
मुस्कुरा के चलो तो ..... ज़िंदगी नूरानी है ;
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कोई छोटा ना बड़ा ..... अपना ना पराया है...
हैं सभी अक्से-ख़ुदा  ... उसकी ही निशानी है ;
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जानते हैं बात सभी ये .. मानता है कौन यहाँ ..
अब 'तरु' ख़ुश है बहुत .. बात ये पहचानी है..!!


..................................................................'तरुणा'...!!!

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Aaj kissa hai wahi .. phir wahi kahani hai...
Aankh me hai nami aur.. dil me ik rawani hai ;
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Kaun ye chupke se.. kaano me.. kah gaya mujhse..
Har taraf hai wahi aur ... uski hi bayani hai ;
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Na ho umeed koi... na hi hausla ho koi...
Kaam aayen kisi ke ... to kya jawani hai ?
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Kaun duniya me hai aisa .. jisey na dard mila ..
Phir bhi khushiyaan hame isme se .. kuchh churani hai ;
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Kaam dil se karo ... aur pyaar karo har ek se..
Muskura ke chalo to .. zindgi nuraani hai ;
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Koi chhota na bada ... apna na paraya hai ..
Hai sabhi akse-Khuda .. uski hi nishani hai ;
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Jaante hai baat sabhi ye .. manta hai kaun yahan …
Ab 'Taru' khush hai  bahut ..  baat ye pehchani hai...!!
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..................................................................................'Taruna'...!!!



Monday, January 12, 2015

मेरी जान ... !!!




जान हो जब तुम हमारी ..  जान से अंजान क्यूँ.. ?
जानते हो जब ये जाना.... जान कर ये आन क्यूँ .. ??
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जान तुमसे दूर होकर........जान जाती है हमारी....
जानकर भी जानेजाँ तुम ......जान से हैरान क्यूँ.. ?
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जानेमन तुम छेड़ते हो ... जानकर के जान को...
जान को ये सब पता है.. बाकी सब हैरान क्यूँ...?

जानकर मैने न तुमको... जान कहकर  है पुकारा..
जान ले लोगे हमारी.........जान से बेजान क्यूँ.. ???
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जान जाएगी हमारी ... एक दिन इस प्यार में ...
जान कर इनकार तुमको ... हाए बदगुमान क्यूँ..?
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जानना तुमको है जाना ... प्यार कितना है हमारा...
जान कर तुम जान लोगे ..   इतने हो बेईमान क्यूँ ..??
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जान हूँ मैं अब भी उसकी... जानते हैं सब यही..
जान ही अंजान है जब ..  न हो 'तरु'  परेशान क्यूँ..?
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...........................................................................'तरुणा'.....!!!
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Jaan ho jab tum hamari ..  Jaan Se anjaan Kyun..??
Jaantey ho Jab ye Jaana... Jaan Kar ye aan kyun... ??
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Jaan tumse door hokar... Jaan jaati hai hamari....
Jaankar bhi Jaanejaa. tum .. Jaan se hiraan kyun..??
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Jaaneman tum chhedte ho… jaankar ke jaan ko..
Jaan ye sab jaanti hai… baaki sab hairaan kyun..?
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Jaankar maine na tumko... Jaan kah kar hai pukaara ..
Jaan le loge hamari ...... Jaan se beJaan kyun.... ???
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Jaan  jaayegi  hamari ... ek din is pyaar me...
Jaan kar inkaar tumko.. haaye badhumaan kyun..?
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Jaanna tumko hai jana... pyaar kitna hai hamara..
Jaan kar tum jaan loge...  itne  ho beimaan kyun..??
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Jaan hun main ab bhi uski... jaante hain sab yahi..
Jaan hi anjaan hai jab...  na ho 'Taru'  pareshaan kyun..?
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..................................................................................'Taruna'....!!!



Wednesday, January 7, 2015

हर बार .. भूल जाती हूँ... !!!



किसी दुश्मन के दिल को भी .. दुखाना भूल जाती हूँ..
ये तीरे-लफ्ज़ .. अक्सर मैं ... चलाना भूल जाती हूँ ;
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सबक़ दोहराती हूँ हर दिन ... बड़ी पाबंदियों से मैं...
भुला दूंगी मैं कल उसको .... भुलाना भूल जाती हूँ ;
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कशिश ऐसी है कुछ तौबा ... के चाहते न हुए भी मैं..
निग़ाहें उसके चेहरे से ..... हटाना भूल जाती हूँ ;
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गुज़रना उस गली से मत ... कहा हर एक ने मुझसे...
ये बाते याद पर ख़ुद को ... दिलाना भूल जाती हूँ ;
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नहीं मुझसा कोई कायल है ... उस बेदर्द का यूँ भी..
कभी पूछे जो हाले-दिल ... सुनाना भूल जाती हूँ ;
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बताऊँ क्या के हूँ घायल मैं .. कितना उसकी नज़रों से...
दिले- बेताब पे मरहम ... लगाना भूल जाती हूँ... !!
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...........................................................................'तरुणा'.....!!!

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Kisi dushman ke dil ko bhi ... dukhana bhool jaati hun..
Ye teer-e-lafz..aksar main .. chalana bhool jaati hun ;
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Sabaq dohraati hun har din .. badi paabandiyon se main..
Bhula dungi main kal usko ... bhulana bhool jaati hun ;
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Kashish aisi hai kuchh tauba .. ke chaahte na huye bhi main..
Nigaahein uske chehre se ... hataana bhool jaati hun ;
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Guzarna us gali se mat ... kaha har ek ne mujhse ..
Ye baate yaad par khud ko .. dilana bhool jaati hun ;
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Nahi mujhsa koi qaayal hai .. us bedard ka yun bhi ..
Kabhi poochhe jo haale-dil ... sunana bhool jaai hun ;
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Bataaun kya ke hun ghayal .. kitna uski nazron se ..
Dil-e-betaab par marham .. lagana bhool jaati hun..!!
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.......................................................................................'Taruna'..!!!


Monday, January 5, 2015

कुछ भी नहीं.... !!!



दिल-ए-नाक़ाम को अब ... कोई तमन्ना ही नहीं...
कोई दुश्मन नहीं.. और कोई भी ..अपना ही नहीं ;
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उनसे पूछो के क्या उनका भी ... कहीं है कोई...
सारी दुनिया में एक .. हम ही तो .. तन्हा ही नहीं ;
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फूल एक दिल पे खिलाया था .. मुहब्बत का कभी ....
उनके चेहरे सा ... कोई और तो ... देखा ही नहीं ;
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वो करम करते हैं मुझपे ....  के सितम करते हैं...
कुछ तो करते हैं .. मुझे कोई भी ..शिकवा ही नहीं ;
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बारहा लगता है .. आए हैं वो.. पुरशिश को मेरी...
जाके दर पर जो.. देखा ... तो कोई था ही नहीं ;
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पहले इक दर्द सा उठता था ... जो वो जाते थे ..
कोई दूरी है .. अब उनसे .. पता चलता ही नहीं ;
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यूँ तो गुज़रा है बड़ा वक़्त ... जो मुड़ कर देखा..
साल कितने गए .. पल  कोई भी बीता ही नहीं ..!!
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...................................................................'तरुणा'...!!!

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Dil-e-naaqam ko ab... koi tamnna hi nahi..
Koi dushman nahi aur... koi bhi apna hi nahi ;
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unse puchho ke kya unka bhi ... kahin hai koi...
saari duniya me ek .. ham hi to .. tanha hi nahi ;
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Phool ek dil pe khilaya tha .. muhabbt ka kabhi..
Unke chehre sa ... koi aur to.. dekha hi nahi ;
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Wo karam karte hain mujhpe .. ke sitam karte hain..
Kuchh to karte hain .. mujhe koi bhi.. shiqwa hi nahi ;
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Baarha lagta hai ... aaye hain wo .. purshish ko meri..
Jaake dar par jo ... dekha .. to koi tha hi nahi ;
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Pahle ik dard sa uthta tha ... jo wo jaate the...
Koi doori hai .. ab unse ... pata chalta hi nahi ;
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Yun to guzra hai bada waqt ... jo mud kar dekha...
Saal kitne gaye ...  pal  koi bhi beeta hi nahi ...!!
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..................................................................................'Taruna'...!!!