हुई न जिसकी कभी .. मैं मगर उसी की रही ..
बढ़े न साथ कदम ... हमसफ़र उसी की रही ;
मिरे मिजाज़ को सराहते है .. लोग सभी..
चश्म तो मेरी थी .. पर नज़र उसी की रही ;
दर पे आई नहीं ... खिड़की खोली भी नही...
हुई दस्तक जो घर .. आठ पहर उसी की रही ;
उम्र गुजरी हैं जहाँ ... जो घर बसाया था..
नाम मिरा था .. दीवारो-दर उसी की रही ;
जब भी उबी हूँ .. तन्हाई से भरी शब से...
दूर पूरब में गाती ... सहर उसी की रही ;
उससे वाबस्ता जो ख्वाहिश थी .. 'तरु' तुझमे..
रही महफूज़ मगर ... उम्रभर उसी की रही..!!!
.............................................................'तरुणा'.....!!!
Huyi na jiski kabhi ... main magar usi ki rahi...
Badhe na saath kadam .. hamsafar usi ki rahi ;
Mire mizaz ko sarahte hain .... log sabhi ...
Chashm to meri thi ... par nazar usi ki rahi ;
Dar pe aayi nahi ... khidki kholi bhi nahi ...
Huyi dastak jo ghar.. aath pahar usi ki rahi ;
Umr guzri hai jahan ... jo ghar basaya tha ....
Naam mira tha ... deewaar-o-dar usi ki rahi ;
Jab bhi ubi hun ... tanhayi se bhari shab se ..
Door poorab me gaati ... sahar usi ki rahi ;
Us'sey vabasta jo khwahish thi .. 'Taru' tujhme..
Rahi mehfooz magar ... umrbhar usi ki rahi ....!!
.....................................................................'Taruna'.... !!!
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