Wednesday, October 15, 2014

प्रेम-दरिया.... !!!




कौन मुझको ही ... मुझमे सोचता गया...
हर अश्कों को रोज़ वो ... पोंछता गया ;

इश्क़ रूमानी से .. रूहानी होता गया..
मैं उस तक .. वो मुझ तक पहुँचता गया ;

दिल की बात .. लब तक न लानी पड़ी...
वो निग़ाहों से .. सब कुछ समझता गया ;

किसी बाहरी चोटों की .. ज़रुरत न थी...
दर्द अंदर से मुझको ... कचोटता गया ;

क्या डर अब मुझे ... इम्तिहानों का है ..
वो परखता गया ... मैं निखरता गया ;

इंतिहा ये हुई ... के होश खोए सभी.....
प्रेम-दरिया में गहरे ... उतरता गया ..!!


.............................................................'तरुणा'...!!!



Kaun mujhko hi ... mujhme sochta gaya...
Har ashqon ko roz  wo ...  ponchhta gaya ;

Ishq rumani se ..... ruhaani hota gaya...
Main us tak.... wo mujh tak pahuchta gaya ;

Dil ki baat ... lab tak na laani padi....
Wo nigaahon se .. sab kuchh samjhta gaya ;

Kisi baahri choton ki... zaroorat  na thi...
Dard andar se mujhko.. kachot'ta gaya ;

Kya dar ab mujhe .... imtihanon ka hai ...
Wo parakhta gaya... main nikharta gaya ;

Intihaan ye huyi ... ke hosh khoye sabhi ...
Prem-dariya me gehre .... utarta gaya .... !!


........................................................................'Taruna'...!!!



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