कौन
मुझको ही ... मुझमे सोचता गया...
हर
अश्कों को रोज़ वो ... पोंछता गया ;
इश्क़
रूमानी से .. रूहानी होता गया..
मैं
उस तक .. वो मुझ तक पहुँचता गया ;
दिल
की बात .. लब तक न लानी पड़ी...
वो
निग़ाहों से .. सब कुछ समझता गया ;
किसी
बाहरी चोटों की .. ज़रुरत न थी...
दर्द
अंदर से मुझको ... कचोटता गया ;
क्या
डर अब मुझे ... इम्तिहानों का है ..
वो
परखता गया ... मैं निखरता गया ;
इंतिहा
ये हुई ... के होश खोए सभी.....
प्रेम-दरिया
में गहरे ... उतरता गया ..!!
.............................................................'तरुणा'...!!!
Kaun
mujhko hi ... mujhme sochta gaya...
Har
ashqon ko roz wo ... ponchhta gaya ;
Ishq
rumani se ..... ruhaani hota gaya...
Main us
tak.... wo mujh tak pahuchta gaya ;
Dil ki
baat ... lab tak na laani padi....
Wo
nigaahon se .. sab kuchh samjhta gaya ;
Kisi
baahri choton ki... zaroorat na thi...
Dard
andar se mujhko.. kachot'ta gaya ;
Kya dar
ab mujhe .... imtihanon ka hai ...
Wo
parakhta gaya... main nikharta gaya ;
Intihaan
ye huyi ... ke hosh khoye sabhi ...
Prem-dariya
me gehre .... utarta gaya .... !!
........................................................................'Taruna'...!!!
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