Monday, October 6, 2014

उसकी फ़िक्र.... !!!





कभी संभलती रही और ..  कभी मैं गिरती रही...
यूँ दौरे-ज़िंदगी से ...... रोज़ ही गुज़रती रही ;

है कौन दुनिया में .... अंजामे-इश्क़ से नावाकिफ़....
ये जानते हुए भी ... दिल की बात करती रही ;

जिसने चाहा भी नहीं ... ख्व़ाब में कभी मुझको ...
जिंदगी भर क्यूँ मैं .. उस एक पर ही मरती रही ;

मेरे बगैर तो वो शख्स ... बड़े सुकून से था ...
मैं जिसकी फ़िक्र में .. दिन-रात एक करती रही ;

जो मिला मुझको वो तो था ... नसीब मेरा ही ...
क्यूँ किसी गैर पे इल्ज़ाम .. रोज़ धरती रही ;

ये ज़िंदगी का हर लम्हा ... कुछ सिखा के गया ..
ये जान कर 'तरु' अब .. खुद में ही उतरती रही .!!


......................................................................'तरुणा'...!!!



Kabhi sambhalti rahi aur .... kabhi main girti rahi ..
Yun daure-zindgi se    ......  roz hi guzarti rahi  ;

Hai kaun duniya me .. anzaam-e-ishq se nawaaqif...
Ye jaante huye bhi  ...... dil ki baat karti rahi ;

Jisne chaaha bhi nahi ..... khwaab me kabhi mujhko...
Zindgi bhar kyun main  ... us ek par hi marti rahi ;

Mere bagair to wo shakhs ,,, bade sukun se tha ....
Main jiski fikr me ...... din-raat ek karti rahi ;

Jo mila mujhko wo to tha .... naseeb mera hi ...
Kyun kisi gair pe ilzaam ..... roz dharti rahi ;

Ye zindgi ka har lamha ... kuchh sikha ke gaya ...
Ye jaan kar 'Taru' ab .... khud me hi utarti rahi...!!



.................................................................................'Taruna'...!!!

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