इक बुराई ही चाही
थी... अच्छाई मांगती तो जुर्म होता..
मोहब्बत ही चाही
बस ... खुदाई मांगती तो जुर्म होता...
किसने चाहा कि
करो तुम ... दर्द-ए-दिल का इलाज़ ..
ज़हर ही चाहा था
.... दवाई मांगती तो जुर्म होता ...
ज़िंदगी जीने के
लिए ... कुछ लम्हें मांगे थे उधार ...
झूठ ही चाहा था
... सच्चाई मांगती तो जुर्म होता...
तुम अपनी इक
निग़ाह में .. जो क़ैद कर लेते मुझको...
असीर बनी रहती
मैं ... रिहाई मांगती तो जुर्म होता...
(असीर-क़ैदी)
दो-चार शिकन..कुछ
ख़ार... कसक-औ-दर्द .. थोड़ा सा...
यही दुनिया थी
मेरी .... पराई मांगती तो जुर्म होता...
कब चाहा नाम लिखो
'तरु' का...
अखबारों-औ-रिसालों में...
पारसाई ही तो
चाही ... शनासाई मांगती तो जुर्म होता...
(पारसाई-आत्म सम्मान... शनासाई-परिचय)
......................................................................'तरुणा'...!!!
Ik buraai hi chaahi thi ... achhayi maangti
to zurm hota...
Mohabbat hi chaahi bas... Khudai maangti to zurm hota..
Kisne chaaha ke karo tum .... dard-e-dil ka ilaaz ...
Zehar hi chaaha tha ... dawaai maangti to
zurm hota...
Zindgi jeene ke liye ... kuchh lamhe maange
the udhaar ...
Jhooth hi chaaha tha ... sachhayi maangti
to zurm hota...
Tum apni ik nigaah me .... jo qaid kar lete
mujhko ...
Aseer bani rahti main ... rihaayi maangti
to zurm hota..
(aseer-prisoner)
Do-chaar shikan..kuchh khaar .... kasak-au-dard
thoda sa....
Yahi duniya thi meri .... Parayi maangti to
zurm hota...
Kab chaaha naam likho 'Taru' ka ....
akhbaaro-au-risaalo me...
Paarsaai hi to chaahi ... shanasai maangti
to zurm hota....
(paarsai--self respect...
shanasai-acquaintance)
....................................................................................'Taruna'...!!!
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