है साथ नहीं वो मगर .. उसकी खनकार फ़िर भी है...
चाहा उसे मैंने बहुत ... पर इख्तियार फ़िर भी है ;
दिल में हैं हम उनके याके... पनाह दी है ग़ैर को..
पता चलता है नही कभी ... दिल बेक़रार फ़िर भी है ;
कद्र उसको न थी मेरी तो .. वो छोड़ गया है मुझे...
अब भी यही लगता है के .. अपनों में शुमार फ़िर भी है ;
मेरी निगाहों की कशिश... न बाँध पाई है उसे..
डूबा न इनमें कभी .. पर तलबगार फ़िर भी है ;
न क़ैद में रखा कभी .... न बंद किया दीवारों में....
महबूस है जो प्यार का... वो गिरफ़्तार फ़िर भी है ;
कुछ तो ख़लिश थी आँख में ...कुछ दर्द सा भी था मुझे....
कितनी दवा की है मैंने ... इश्क़ का बुख़ार फ़िर भी है..!!
.................................................................'तरुणा'...!!!
Hai saath nahi vo magar ... uski khankaar phir bhi hai...
Chaaha usey maine bahut ... par ikhtiyaar phir bhi hai ;
Dil me hain ham unke yake ... panah di hai gair ko ...
Pata chalta hai nahi kabhi ... dil beqaraar phir bhi hai ;
Qadr usko na thi meri to..... vo chhod gaya hai mujhe..
Ab bhi yahi lagta hai ke... apno me shumar phir bhi hai ;
Meri nigaahon ki kashish ... na baandh paayi hai usey...
dooba na vo inme kabhi ... mera talabgaar phir bhi hai ;
Na qaid me rakha kabhi... na band kiya deewaron me...
Mehbooos hai jo pyaar ka ... vo giraftaar phir bhi hai ;
Kuchh to khalish thi aankh me ... kuchh dard sa bhi tha mujhe..
Kitni dawa ki hai maine ..... ishq ka bukhaar phir bhi hai .... !!
....................................................................................'Taruna'... !!!
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