सबका तन मन धन है पैसा
कितनो की धड़कन है पैसा ;
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फटा हुआ दामन है पैसा...
रोता इक बचपन है पैसा ;
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रिश्तों का आधार बना पर ..
ख़ुद कितना निर्धन है पैसा
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दावा करता सुलझाने का...
बड़ी अजब उलझन है पैसा ;
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प्यार मुहब्बत ऐसे करते...
सपनो का साजन है पैसा ;
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अलग अक्स दिखलाता सबको..
कैसा ये दर्पण है पैसा ;
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ख़ार बहुत और गुल हैं थोड़े...
ऐसा इक गुलशन है पैसा ;
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धूप सरीखा खिला खिला सा...
और कभी सावन है पैसा ;
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आँगन में दीवार उठा दे...
बच्चों में अनबन है पैसा ;
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'तरुणा' कितने ही लोगों के...
जीवन का दर्शन है पैसा...!!
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................................'तरुणा'..!!!
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