जो क़रीने से सजी थी बेक़रीना हो गई ..
प्यार से देखा जो उसने ज़िन्दगानी खो
गई ;
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हो गई बीमार उनके इश्क़ में मैं इस
क़दर...
यूँ लगा जैसे निकलकर जिस्म से जां
तो गयी;
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मैं भजन गाती रही जिस देवता के उम्र
भर..
नींद सौतन उसकी आँखों में उतर कर बो
गई ;
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लाख़ तरकीबें तराशीं क़ैद से छूटे न
हम...
ज़िंदगी जब थी उन्हीं की तो उन्हीं
की हो गई ;
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ये कहाँ मालूम था ऐसा भी होगा मेरे
साथ ;
रात भर जागी रही मैं दिन निकलते सो गई
;
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धूप 'तरुणा' ले गई जब
मुस्कराहट छीन कर...
रात अश्क़ों से फ़र्सुदा गुल का चेहरा
धो गई..!!
(फ़र्सुदा-उदास)
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......................................................'तरुणा'...!!!