जब
से तू बन गई हमसफ़र ज़िंदगी...
हंस
के होने लगी अब गुज़र ज़िंदगी ;
.
ज़िंदगी
को मयस्सर नहीं ज़िंदगी....
फिर
भी हंस के हुई है बसर ज़िंदगी ;
.
सिर्फ़
कांटे नहीं फूल भी हैं खिले...
है
महकती हुई पुरअसर ज़िंदगी
;
.
मंज़िलें
दूर हैं दम तो ले सुन ज़रा ;
दो
घड़ी रास्ते में ठहर ज़िंदगी ;
.
इश्क़
की नाव पर कर लिया है बसर..
अब
बिगाड़ेगी क्या ये भँवर ज़िंदगी ;
.
उम्र
भर ज़िंदगी को तलाशा किए...
गुमशुदा
ही रही ये मगर ज़िंदगी ;
.
धूप
भी छाँव भी ठौर भी ठाँव भी..
हर
नज़ारा दिखाए इधर ज़िंदगी ;
.
रूठती भी रही मानती
भी रही ...
मैं
इधर तो रही है उधर ज़िंदगी ;
.
लाख
धोखे मिले फिर भी लगता यही..
तू
हमेशा रही मोतबर ज़िंदगी ;
(मोतबर- विश्वसनीय/ reliable)
.
छाँव
भी हो नहीं इक समर भी न हो ...
मत
बनाना तू ऐसा शज़र ज़िंदगी ;
(समर-फल/fruit)
.
वक्ते-रुखसत
हो जाना भी मुश्किल मेरा ...
टूटकर
चाह मत इस कदर ज़िंदगी ...!!
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'तरुणा'...!!!
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