वो जिस पे के सारा ज़माना फ़िदा है ..
किसी
को नहीं बस मुझे चाहता है ;
.
समझता
तू ख़ुद को अगर देवता है ...
ज़रा
देख पहले क्या इंसा बना है ;
.
न
पूछो के हमको हुआ आज क्या है ..
मिली
दिल लगाने की हमको सज़ा है ;
.
मुहब्बत
न करना कहा था सभी ने...
हमी
ये न समझे हमारी खता है ;
.
धुँआ
उठ रहा है जो हर सिम्त से अब ..
मेरे
साथ किसका ये दिल जल रहा है ;
.
हमेशा
ही करते वही काम क्यूँ हो ..
जहाँ
सिर्फ़ अपना दिखे फ़ायदा है ;
.
वो
काबिज़ रहा है हमेशा ही दिल में ..
नहीं
दरमियाँ अब कोई फ़ासला है ;
.
ज़माने
में दस्तूर देखा पुराना...
भले
को यहाँ हर कोई लूटता है ;
.
जिसे
खोने से हम डरे उम्र भर ही ..
हमारे
लिए वो कहाँ सोचता है ;
.
गले
मिल के शिकवे-गिले सब भुला दो..
भला
किसका गुस्से से आख़िर हुआ है ;
.
सजाई
है सपनो की महफ़िल जो हमने..
यहाँ
आज तो चाँद पूरा खिला है ;
.
...................................................'तरुणा'...!!!
No comments:
Post a Comment