इस मुहब्बत का .. फलसफ़ा क्या है...
है ये नुकसान .... तो नफा क्या है ;
वो तो रहता है मुझमे ... 'मैं' बनकर...
फिर ये थोड़ा सा .. तो जुदा क्या है ;
सौंप दी उसको ... क़िताबे-दिल अपनी...
वो नहीं जो तो ... फिर लिखा क्या है ;
ज़ेहनो-दिल में .. ख़ुशी सी तारी है..
क्यूँ मैं सोचूं .. अब वफ़ा क्या है ;
याद उसकी है ... खिल गयी मुझमे...
वो गया है तो .. ये छिपा क्या है ;
कहते हैं लोग .. उजड़ गया है घर...
सच यही है तो .. ये बसा क्या है ....!!
...................................................'तरुणा'......!!!
Is muhabbat ka ... falsafa kya hai ..
Hai ye nuksaan ... to nafa kya hai ;
Wo to rahta hai mujhme ... 'Main' bankar ...
Phir ye thoda sa ... to Juda kya hai ;
saunp di apni ... kitaab-e-dil usko...
Wo nahi jo to .. phir likha kya hai ;
Zehno-dil me ... khushi si taari hai ...
Kyun main sochun ... ab wafa kya hai ;
Yaad uski hai ... khil gayi mujhme ...
Wo gaya hai to ... ye chhipa kya hai..
Kahte hain log ... ujad gaya hai ghar ...
Sach yahi hai to ... ye basa kya hai... !!
........................................................................'Taruna'...!!!
3 comments:
Hum bhi the Bazar me... tum daam to puch lete...
tune khrida hi nhi...to bika kya hai..! :-)
Waaaahhh.... mehuldhinoja ji.. :)
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