मुझको वो छोड़कर गया कैसे...
वो तो था हमसफ़र गया कैसे ;
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दिल पे क़ाबिज़ रहा जो बरसों से....
आज दिल से उतर गया कैसे ;
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मैंने जो उम्र भर समेटा था...
वो उजाला बिख़र गया कैसे ;
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वो जो इक पल जुदा न रहता था..
वो गया तो मगर गया कैसे ;
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ख्व़ाब में भी न था गुमां जिस पर…
दुश्मनों के वो घर गया कैसे ;
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कोई ख़ूबी नज़र तो आई है...
वरना मुझ पर वो मर गया कैसे ;
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सिर्फ़ उस पर ही तो ये ज़ाहिर था...
राज़ आख़िर बिखर गया कैसे ;
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राब्ता गर नहीं था 'तरुणा' से....
मुझको छू कर गुज़र गया कैसे ..!!
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.......................................'तरुणा'...!!!
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