कितनी कहानियाँ ही मेरे साथ चल रही
हैं...
पर छोड़ कर मुझे ही आगे निकल रही हैं
;
.
कब तक चराग़ मेरा जल पाएगा यहाँ
पर...
जो साथ थी हवाएँ पाला बदल रहीं हैं ;
.
ये किस नज़र से उसने देखा मुझे कि
मुझमे...
लाखों ही शम्में जैसे दिल में पिघल
रही हैं ;
.
मुश्किल की थी जो घड़ियाँ माँ बाप की
दुआ से...
आने से पहले मुझ तक वो सारी टल रही
हैं ;
.
इतनी कशिश है मेरे महबूब में कि
तौबा...
ख़ामोश हसरतें भी दिल में मचल रही
हैं ;
.
नफ़रत मिली थी जो भी वो प्यार से
बदलकर...
‘तरुणा’ की चाहतें अब ग़ज़लों में ढल रही हैं..!!
.
...........................................................’तरुणा’....!!!
No comments:
Post a Comment