ख़्यालों को मेरे महकाता है...!
मेरे अंधेरों में जुगनू सा चमक...
नई किरनों को लें आता है...!
तेरे नैन-नक्श में खोकर मैं..
अपने को भूलती जाती हूँ...!
तेरे केसर सी रंगीं बौछारों में...
मैं फिर से भीगती जाती हूँ....!
तुम दिल के मेरे हो इतने नज़दीक...
जब चाहूं तुम्हें छू लेती हूँ....!
गुनगुना कर तुमको रोज़ ही मैं...
नवजीवन को पा लेती हूँ....!!
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Zindgi se bhara ek vo chera...
Khyaalon ko mere mehkaata hai...!
Mere andheron me jugnoo sa chamak...
Nayi kirnon ko le aata hai...!
Tere nain-naksh me khokar main...
Apne ko bhoolti jaati hoon....!
Tere kesar sii rangeen bauchharon me...
Main phir se bheegti jaati hoon...!
Tum dil ke mere ho itne nazdeeq...
Jab chaahe tumhe chhoo leti hoon..!
Gunguna kar tumko roz hi main....
Navjeevan ko pa leti hoon....!!
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