वो रूठते हैं खुद ही ... और मनाए भी हम ही....
हर बार उनकी राह में .. पलकें बिछायें हम ही....
जब बोलते हैं हम पलट के .. न देखें एक नज़र भी..
हम भी न जब देखें .... तो कुसूरवार भी हम ही...
हमने कब कहा था ... दिल लगा लो हम से ही..
अब दे दिया हमको दिल .. तो गुनहगार भी हम ही..
जब देते थे तवज्जो .. तो भाव खाते थे वो जनाब....
अब कहते हैं कि उनसे बढ़के ... तलबगार हम नहीं..
सवाल सारे उनके .... फ़ैसलें भी लें वो खुद ही.....
ये कैसी अदालत है....कि जवाबदार भी हम नही...
सारे जहाँ में शोर मचाते हैं ... अपनी मुहब्बतो का..
अरे...दिया है जो हमको दिल ..क्या हक़दार हम नही..
................................................................'तरुणा'... ||
Vo roothte hain khud hi ... aur manaye bhi ham hi....
Har baar unki raah me .... palken bichhayen ham hi ...
Jab bolte hain ham palat ke ... na dekhen ek nazar bhi...
Ham bhi na jab dekhen ... to Qasoorwaar bhi ham hi ...
Hamne kab kaha tha ... dil laga lo ham se hi ...
Ab de diya hamko dil .. to gunahgaar bhi ham hi..
Jab dete the tavajjo ... to bhaav khaate the vo janaab ..
Ab kahte hain ki unse badhke ... talabgaar ham nahi ...
Sawaal saare unke .... faisle bhi len vo khud hi ...
Ye kaisi adaalat hai .. ki jawaabdaar bhi ham nahi ...
Saare jahan me shor machaate hain .. apni muhabbaton ka ..
Arey .. diya hai jo hamko dil .. kya haqdaar ham nahin..
................................................................................. 'Taruna'.... !!!
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7 comments:
:(
<3
:(
<3
इसे ही एक तरफ़ा इजहारे महोब्बत कहते है बहुत सुंदर रचना
बहुत ही सुन्दर व सोच में डाल देने वाली रचना है आपकी। जवाब तो सोचकर ही देना होगा।
Johny ji.. thanks.. :)
Ramu ji.. Many thankss.. :)
Anil Ji.. bahut bahut Shukriya.. :)
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