कभी सोचती
हूँ...तन्हाई में बैठ कर...
जब मैं होती
हूँ....ख़ुद के सबसे ज़्यादा क़रीब...
अगर ये..दर्द न
रहा...कभी...मेरे जीवन में...तो फ़िर...
क्या
बचेगा...मेरी ज़िंदगी में....एक खालीपन के....सिवा..
जब तक
ये...हैं...मुझमें...कहीं....
एहसास है
अपने...ज़िन्दा होने का...
कहीं चुभता है जब
मुझे..तो चौंकती हूँ...मैं..
चुटकी काटनें का..एहसास
भीतर तक होता है....
लगता है..अब भी
साँसे चल रहीं हैं...मेरी...
ये गम....ये
दुःख...ये दर्द...ग़र चला गया तो...
रीती रह जाऊँगी
मैं...ख़ाली घड़े सी...
इसीलिए चाहती
हूँ...बस यही...
भरी रहूँ...लबालब
मैं इससे...ऊपर तक...
बस छलकूं
नहीं...बहूँ नहीं...
किसी को पता नहीं
चले...कभी इसका...
नहीं तो...कोई
दूर न कर दे...इससे मुझे...
कोई चुरा न
ले...कहीं इसको...
क़ीमती है ये
दर्द...मेरे लिए...
बहुत
अनमोल....बहुत बहुमूल्य...
............................................'तरुणा'...!!!
10 comments:
nice one mam..
बहुत खूब फ़रमाया तरुण जी
हर शख्स यहाँ... ग़म में है खोया
जिसे ग़म नहीं... वो कब्र में है सोया..!
behtareen kavita...
AKanksha ... soo many thanksss .. :)))
Subh... bahut hi shukriya .. :)))
Mahima ... Soo many thanksss .. :)))
Atee Sunder
Ashwani Tondon Jii ... bahut bahut aabhaar ... :)))
Kya khub likhti hai ap mdm ji
Aniket Gupta ji ... bahut shukriya ... :))))
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