Wednesday, February 6, 2013

भीड़.....


कभी यूँ भी होता है...
गुज़र रही होती हूँ...मैं भीड़ से...
अंजान चेहरे....बेगाने स्पर्श....
जैसे हज़ारों नाग...जाते हैं मुझको डस..
वो तीख़ी निगाहें...वो बदबू भरे पसीने...
लगता हैं अब न देंगे...ये मुझको जीने...
वो शोरोगुल का माहौल....
कर जाता है..इस जग से बेगाना...
एक घिन...एक वितृष्णा सी उठती हैं....
और कुछ न रहता है...अपना...
चल नहीं पाती हूँ...उस भीड़ के घेरे में...
मैं सिमट जाती हूँ....फिर अपने दायरे में...
डर लगने लगता है अब...मुझको इस भीड़ से...

और ऐसे मे.....
तुम आ जाते हो...एकदम पास मेरे....
सटाकर मुझको अपने ज़िस्म से...
अपनी बाँहो के घेरे को...मेरे इर्द-गिर्द फैला के..
बचा लेते हो..उन बेगाने लोगों से...
उनके उस घृणित स्पर्श से...
जैसे किसी कवच मे..घिर जाती हूँ मैं...
तुम्हारे प्यार से बँध जाती हूँ मैं...
तुम्हारे बदन की ख़ुश्बू मे...
वो बदबू घुलने लगी है....
सहारा तेरी बाँहो का है...मुझको...
ये घुटन अब छटने लगी है....
हो जाती है...मेरी शामों की सहर...
अब न लगता है...मुझे इस भीड़ से डर.....
अब नही लगता है डर....कोई डर....
इस भीड़ से डर......
........................................तरुणा||

2 comments:

Bhavna....The Feelings of Ur Heart said...

bahut khub ....aap bahut achha likhati hain....kisi ke pyar mein mehfus hona kise kahte hain ye aaapki rachana se pata chalta hai ....too good

taruna misra said...

Bahut shukriya...Bhavna ji.....bas jo bhi dil se mehsoos karti hoon...vahi likh deti hoon...apna dimaag nahi lagaati...aapka bahut aabhar....:)