लोग अक्सर
पूँछतें हैं....मुझसे....
ख़ाली
हो....जिम्मेदारियां भी हो गई हैं...कम...
न करती हो
नौकरी.....न हैं...कोई भी...काम...
करती कैसे हो
अपना....समय...व्यतीत....
क्या वक़्त जाता
है....तुम्हारा बीत...???
अब क्या
कहूँ....मैं....क्या बताऊँ.....??
किस किस को....मैं
ये समझाऊँ.....?
कि..समय तो मुझे
है...कम पड़ता.....
दिन में 25 घंटे होते...तो वो भी चलता....
न मैं....खाली
हूँ....न ही बेकार.....
न ही बहाती
हूँ...आंसू ज़ार-ज़ार.....
मुझे तो फुरसत ही
नहीं है....तेरी याद़ों से....
जो तूने किये थे
कभी...उन वादों से.....
तेरी याद़ों को
यूँ संजो कर...रखा है.....
तुझे भी न पता
है...कितना सहेज रखा है....
रोज़-रोज़ उनको
झाड़ती...पोंछती...धोती हूँ....
तार पर डाल...धूप
में सुखाती हूँ....
शाम होते
ही...उनको तहा कर के.....
सहेज लेती
हूँ...दिल की अलमारी में रख कर...मैं...
कभी सर्दियों की
धूप में घुमाती हूँ..
तो कभी...बारिश
के पानी में...भिगोती हूँ...
गर्मियों की
सुनहरी सुबह में....जगाती हूँ...
तो हर सुहानी शाम
में...अपने साथ टहलाती हूँ...
उनको
पढना...लिखना...गाना...गुनगुनाना...
कभी कभी
डराना.....या मुंह भी चिढ़ाना.....
जब तंग करतीं
हैं....बहुत ज्यादा मुझे....
तो डांटती भी
हूँ....चपत लगाती हूँ उन्हें....
रोज़ अपनी बाहों
में...भर कर सुलाती हूँ....
दूर न हो जाएं
मुझसे...जी भरकर बहलाती हूँ...
कम पड़ जाता
है...वक़्त मेरा वरना....
चाहती तो
हूँ...और भी बहुत कुछ करना...
और भी ज्यादा...पालती-पोसती
उनको....
अपने तन-मन
में...और सोचती उनको....
और लोग कहतें
हैं....तुम खाली हो....
कैसे
कहूँ...कि...नहीं...नहीं....नहीं...
तेरी याद़ों के
लिए भी वक़्त...कम हैं...कहीं....
कम है कहीं...कम
है...कहीं....
......................................................'तरुणा'......!!!
4 comments:
ऐ दर्द, अब तू बता...........
टूटता क्यूँ नहीं ये " दिल का सिलसिला "........!!!
Hmmmmmm Reminiscent..... yakeenan ..yadon me log ... itna gumm ho jaate hain ... ki ....
wakai me ... Highly Occupying Occupation ....
Bahot achha likha hai Tarunaji aapne :)
Roz ROse :)
Pravin Vajpayee ji......bahut bahut shukriya.....:)
Prajwal ji....Yesss It is....agar sach me pyaar hai to...phir issey badhkar koi kaam nahi hai...bahut shukriya...:)
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