आज फिर पहुँच गई वहीं....
कार उठा के अपनी.....
जहाँ मिले थे हम..एक बार यूँ ही...
पता था मुझे कि....
तुम होगे वहाँ नही.....
फिर भी न जाने क्यूँ पर..पहुँची वहीं...
पर वहाँ तो....तुम थे मौज़ूद...
हर चीज़...हर जर्रे में...हर दिशाओं...हर सू...में
हवाओं में तुम्हारी मादक ख़ुश्बू थी...
शाम में तुम्हारी....अंगड़ाईयाँ..
सूरज की लालिमा में भी थे तुम...
कुहासों में थी तुम्हारी....परछाईयाँ...
पत्तों की सरसराहट में...
लगती थी...तुम्हारी आवाज़...
सोचा था.... न होगे वहाँ तो...
दिल को दिला दूँगी...विश्वास..
जहाँ-जहाँ तक नज़र पहुँची...मेरी..
दिखते रहे बस....तुम ही तुम...
तुम को ही....जीती रही मैं बस...
खड़ी..खड़ी...यूँ ही..गुमसुम...
चले तो गये हो....बहुत दूर...
मेरी जिंदगी से तुम...
पर अब क्या...किससे...कैसे कहूँ???
जब दिखते हो...हर जगह...तुम ही...
बस तुम ही....सिर्फ़ तुम ही...
एक तुम ही............
.....................................तरुणा||
4 comments:
चले तो गये हो....बहुत दूर...
मेरी जिंदगी से तुम...
पर अब क्या...किससे...कैसे कहूँ???
जब दिखते हो...हर जगह...तुम ही...
बस तुम ही....सिर्फ़ तुम ही...
एक तुम ही.., वाह, तरुणिमा जी, रूमानी यादें कब भुलाई जा सकती हैं, मुझे बहुत अच्छी लगी आपकी रचना, बधाई॰
उमाजी...मैं आपकी बहुत आभारी हूँ कि आपको मेरी रचना इतनी पसंद आई...जी हाँ ...रूमानी यादे कभी भी नहीं भुलाई जा सकती....और मुझे लगता है कि हर याद को संजो कर रखना चाहिए..मैंने यही कोशिश अपनी इस और बाकी रचनाओं में की है...पढ़ कर बताइयेगा कि..मैं उसमे कहाँ तक सफल हुई हूँ....बहुत बहुत शुक्रिया....तरुणा मिश्रा ...:)
purani yadon ke sath pyar ke komal ehsason ko abhivyakt karti sundar rachna...
Achi hai aapki rachna tarunaji jise dil se insan pyar kare har cheez mein wohi nazar aata hai.
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