कल रात...फिर वही हुआ..
जो हो रहा है...कई रातों से..
सो जाता है..जब जग सारा..
तुम आ जाते हो...बातों बातों में..
कहाँ छुपी थी मुझमें...
वो ढेरों बातें....
वो अनकही सी मुलाक़ातें..
कहाँ था....भावनाओं का ज्वार....
वो उफनता...मचलता प्यार...
मैं कितनी...निशब्द थी...
कितनी अनसुनी थी...
न अपने ख़्वाबों की चादर...
कभी मैने बुनी थी...
मैं....सदियों से चुप थी...
कहीं अपने अंदर ही..गुम थी..
अब कितने रंग छलकनें लगें हैं...
मेरे जज्बातों को शब्द..मिलने लगें हैं...
रोज़ नये-नये भाव....
मन मे गुन्जित हैं होते..
वो चुप्पी...खो गई कहाँ...
थकी थी मैं...जिसे ढोते-ढोते..
एक मूक सी मूरत थी..मैं...
अब...वाचाल हो गई हूँ....
मैं...कितनी मुखर...
कितनी चंचल...हो गई हूँ..
अब ढेरों शब्द...मुझमे...
उमड़ने लगें हैं.....
मन के सारे तार...तुमसे...
जुड़ने लगें हैं.....
मेरे शब्दों को मिल गई हैं..
अब कविता....
मैं थी एक...बेजान बुत..
भर गई है...जिसमे...
जीवंतता....
....................तरुणा||
7 comments:
very beautiful poem...
Mahima....thank you sooooooooo very much...:)
एक मूक सी मूरत थी..मैं...
अब...वाचाल हो गई हूँ....
मैं...कितनी मुखर...
कितनी चंचल...हो गई हूँ..
अब ढेरों शब्द...मुझमे...
उमड़ने लगें हैं.....
मन के सारे तार...तुमसे...
जुड़ने लगें हैं.....
वाह, जब प्रेम का जीवन मे प्रवेश होता है तो ऐसा ही होता है, आपने हमारी उन कोमल भावनाओं को शब्द दे दिये हैं अपनी रचना में, शुक्रिया और बधाई॰
उमा जी...आपने बहुत ही गहराई से मेरी कविताओं को पढ़ा है....बहुत आभारी हूँ मैं आपकी..प्रेम किसी को भी बदलने के लिए काफी है...और उसके हज़ारों रंग हैं...अपनी कविताओं के माध्यम से वही दर्शाने की कोशिश करती हूँ...आप जैसे लोगों की वजह से हौसला बरकरार रहता है,,,बहुत शुक्रिया आपका....तरुणा...:)
Bahut sunder..tumse mil kar jeene ke ikcha hone lage hai. ..
mei mook si gudia thi per ab vachaal ho gayee, teri har bat per nihaal ho gayee....ankhiyon se bolna seek liya hei ab meine...ek nanhin si zubaan jee ka janjaal ho gayee...tere khyalon mei ulajhte ulajhte mei khud hi ek makadjaal ho gayee....:(
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