Monday, December 17, 2012

उड़ान....


कौन रोक पाया है परिंदे को...
विशाल अंतरिक्ष की ऊँचाइयाँ...नापने से...
उड़ान जो...एक छोर से दूसरे छोर तक....
फैली है....निर्बाध....स्वच्छन्द...
और वो खुश है...अपनी स्वच्छंदता में...
धरा को क्या हक़..क्या अधिकार...
क्यूँ बने बाधक...उसकी उड़ान में...
उड़ो...तय करो आसमान की सरहदों को...
कोई सीमा नहीं....कोई रोक नही....
हाँ....बस जब जाओ थक...
अपनी इन बेलगाम उड़ानों से...
काँपने लगें परवाज़ तुम्हारें....
जी चाहे सहारा लेने को....
तो आ जाना...मेरे पास...
मैं फ़ैलाएँ हूँ आज भी...अपनी बाँहें...
कर रहीं हूँ...इंतज़ार तुम्हारा...
लौटोगें तो तुम..ज़रूर एक दिन....
जब तुम तय करोगे..स्वयं...
अपनी सीमा...अपना दायरा...
और मैं खड़ी हूँ...प्रतीक्षा में....
तुम्हारे उस विश्राम को...
सहारा देने के लिए...
आ जाओ....शांति की खोज में...
विश्रान्ति को पाने के लिए....
आ जाओ......
..........................तरुणा||

4 comments:

Tara said...

Lovely ma'am :)

Tara said...

beautiful ma'am :)

taruna misra said...

Tara...bahut bahut shukriya...:)

Daksha Mehta (babboo's) said...

waah waah Taruna ji..... bahut khoob likha hai ... kaun rok paya hai bhala...