कौन तय कर पाया है?????
आसमानों की सरहदों को....
न मुझ जैसी धरा...न कोई चाँद सितारा...
फैला है....तुम्हारा वज़ूद.....
न जाने...कहाँ कहाँ तक...
न मैं जान पाई हूँ..न कोई और..
तुम्हारा विस्तार है...अनंत तक..
न कोई ओर है...न छोर...
तुम हो अनंत..शाश्वत और विस्तृत...
मैं एक बहुत छोटी सी धरा...
चाहा नहीं की नापू कभी..तुम्हारे..
विस्तार को....दामन को...
मैं तो बस खुश हूँ..अपने हिस्से का..
आकाश पा कर.....
और...सच कहूँ....तो वही हैं..
मेरे लिए पूरा विस्तार...पूरा आकाश..
जो मुझको ढक लेता है...
पूरा का पूरा...अपने दामन में..
समेट लेता है..अपनी बाँहो में..
मेरी गहराइयों को....
और मैं...उस टुकड़े-टुकड़े आकाश को ही...
बस...मानती हूँ....जानती हूँ....
पूरा अंतरिक्ष विशाल..न मेरा था कभी..
तुम समेटों चाहे..हज़ारों मुझसी धराओं को..
अपने अंदर...अपनी विशालता में...
मुझे तो मिल गया है.....
मेरा विस्तार...मेरा आसमान...मेरा आकाश..
बस...वही है मेरा...सिर्फ़ मेरा...
..........................................तरुणा||
13 comments:
lovely ... beautiful poem
Mahima....bahut bahut shukriya...:)
बहुत खूब,, तरूणा जी,
राजीवजी...बहुत बहुत आभार...:)
मुझे तो मिल गया है.....
मेरा विस्तार...मेरा आसमान...मेरा आकाश..
बस...वही है मेरा...सिर्फ़ मेरा...behad khoobsurat rachna
Pawan ji.... bahut bahut Shukriya... :)))
बहुत खूब है आपके हिस्से का आसमान , वाह , क्या बात :)
Shailendra ji... bahut shukriya.. :)
Muhabbat ka SAZDA..............Har ek ke baski baat nahi..........BAHUT KHOOB...............
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति
Manu ji.... bahut bahut shukriya.. :)))
Narendra Kumar ji... bahut Shukraguzaar hoon..:)
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