Friday, March 18, 2016

चलो फिर आज ....!!!



चलो फिर आज तुमसे हम बिछड़कर देख लेते हैं..
कि ये इल्ज़ाम भी हम अपने सर पर देख लेते हैं ;
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शिक़ायत है तुम्हे आवारगी से गर हमारी तो..
चलो कुछ दिन तुम्हारे घर ठहरकर देख लेते हैं ;
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मुहब्बत जह्र है आसां कहाँ हैं इसको पी लेना....
मगर हमने ये सोचा है कि पीकर देख लेते हैं ;
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नहीं है तैरना लाज़िम समंदर है ये चाहत का...
हमें तो डूबना है सो उतरकर देख लेते हैं ;
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नहीं है खौफ़ ये टुकड़े हमारे दिल के कर दोगे......
दिखोगे तुम ही तुम ‘तरुणा’ बिखरकर देख लेते है ..!!
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..............................................................'तरुणा'...!!!





Tuesday, March 8, 2016

प्यार की नेमत..!!


प्यार नेमत है ये आज़ार नहीं होता है...
ऐसा जज़्बा है जो बेकार नहीं होता है ;
(आज़ार- रोग/व्यसन)
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लोग मतलब के लिए रिश्ता बनाते क्यों हैं...
प्यार के रिश्तों में व्यापार नहीं होता है ;
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आज तो टूट के बिखरूं मैं तेरे दामन में..
कैसे तुझसे कहूँ इजहार नहीं होता है ;
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गरचे हम याद न करते हैं कभी भी उनको...
दिल भुलाने को भी तैयार नहीं होता है ;
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बात यकलख्त सभी अपनी कहे मनवा ले..
हर किसी को तो ये अधिकार नहीं होता है ;
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रोशनी-रंग मयस्सर है अमीरों को बस....
मुफलिसों के यहाँ त्योहार नहीं होता है ;
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इश्क़ आसान नहीं है कि निभा पायें सभी..
डूब के गर न किया पार नहीं होता है ;
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आदमी चाहे तो आकाश उठा ले सर पर...
काम तो कोई भी दुश्वार नहीं होता है ..!!

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..................................................'तरुणा'...!!!




Wednesday, March 2, 2016

उलझे हुए ख़्याल... !!!













कितने उलझे हुए ख़्यालों में..
ज़िंदगी कट गई सवालों में ;
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ज़िस्म की भूख मिट गई लेकिन..
क़ैद लेकिन हैं रूह तालों में ;
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हर घड़ी ये गुमान होता है..
है अंधेरे बहुत उजालों में ;
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खा गए लोग तो ज़ख़ीरे तक..
हम भटकते रहे निवालों में ;
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हमने तुमको कहाँ नहीं ढूँढा...
थे कलीसों न तुम शिवालों में ;
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आप क़ीमत अगर चुकायेंगे..
छाप देंगे सभी रिसालों में ;
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उजले चेहरे ही देखते सब हैं..
कौन देखे लहू है छालों में ;
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आप को कौन जानता है यहाँ ...
आप तस्वीरों में न मालों में..!!
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.......................................'तरुणा'...!!!