ग़ज़ल
वो नई.... गुनगुनाने लगा है...
उसे
कौन फिर .. याद आने लगा है ;
.
मुझे
देख कर .. लड़खड़ाया.. ज़रा वो...
नया
रोज़ इल्ज़ाम ... आने लगा है ;
.
बड़ी
भीड़ सी ..लग गई है .. वहां फिर...
कहानी
नई क्या ... सुनाने लगा है ;
.
वही
मोहरे हैं ... वही हैं बिसाते...
नया
रंग कैसे ... ज़माने लगा है ;
.
अलग
हो चुके जब... सभी रास्तें हैं ...
अचानक
.. नज़र क्यूँ .. मिलाने लगा है ;
.
वही
बात उसकी ... है अंदाज़ भी वो ...
वही
राग फिर ... दोहराने लगा है ;
.
कभी
ये .. कहा था.. न बदलूँगा .. अब मैं..
हुआ
क्या .. निगाहें .. चुराने लगा है ;
.
है
इंकार .. मुझको ... सियासत से तेरी...
तू
ख़ुद को .. नज़र से ... गिराने लगा है..!!
.
....................................................'तरुणा'...!!!
.
Ghazal wo
nayi .. gungunaane laga hai...
Usey kaun
phir .... yaad aane laga hai ;
.
Mujhe
dekh kar ... ladkhdaaya... zara wo...
Naya roz
ilzaam .... aane laga hai ;
.
Badi
bheed si ... lag gayi hai .. wahan phir..
Kahani ..
nayi kya .. sunaane laga hai ;
.
Wahi
mohrey hain... wahi hain bisaatey...
Naya rang
... kaise ... jamane laga hai ;
.
Alag ho
chuke jab ... sabhi raaste hain …
Achanak
.. nazar kyun .. milaane laga hai ;
.
Wahi baat
uski ... hai andaaz bhi wo ...
Wahi raag
phir ... dohraane laga hai ;
.
Kabhi ye
kaha tha ... na badlunga ab main...
Hua kya..
nigaahein ... churaane laga hai ;
.
Hai
inkaar ... mujhko siyasat ... se teri...
Tu khud
ko .. nazar se ... giraane laga hai ..!!
.
......................................................................'Taruna'...!!!
.
No comments:
Post a Comment