Saturday, April 18, 2015

नया रंग.... नई ग़ज़ल....!!!


ग़ज़ल वो नई.... गुनगुनाने लगा है...
उसे कौन फिर .. याद आने लगा है ;
.
मुझे देख कर .. लड़खड़ाया.. ज़रा वो...
नया रोज़ इल्ज़ाम ... आने लगा है ;
.
बड़ी भीड़ सी ..लग गई है .. वहां फिर...
कहानी नई क्या ... सुनाने लगा है ;
.
वही मोहरे हैं ... वही हैं बिसाते...
नया रंग कैसे ... ज़माने लगा है ;
.
अलग हो चुके जब... सभी रास्तें हैं ...
अचानक .. नज़र क्यूँ .. मिलाने लगा है ;
.
वही बात उसकी  ... है अंदाज़ भी वो ...
वही राग फिर  ... दोहराने लगा है ;
.
कभी ये .. कहा था.. न बदलूँगा .. अब मैं..
हुआ क्या .. निगाहें  .. चुराने लगा है ;
.
है इंकार .. मुझको ... सियासत से तेरी...
तू ख़ुद को .. नज़र से ... गिराने लगा है..!!
.
....................................................'तरुणा'...!!!
.

Ghazal wo nayi  .. gungunaane laga hai...
Usey kaun phir .... yaad aane laga hai ;
.
Mujhe dekh kar ... ladkhdaaya... zara wo...
Naya roz ilzaam .... aane laga hai ;
.
Badi bheed si ... lag gayi hai .. wahan phir..
Kahani .. nayi kya .. sunaane laga hai ;
.
Wahi mohrey hain... wahi hain bisaatey...
Naya rang ... kaise ... jamane laga hai ;
.
Alag ho chuke jab ... sabhi raaste hain …
Achanak .. nazar kyun .. milaane laga hai ;
.
Wahi baat uski ... hai andaaz bhi wo ...
Wahi raag phir ... dohraane laga hai ;
.
Kabhi ye kaha tha ... na badlunga ab main...
Hua kya.. nigaahein ... churaane laga hai ;
.
Hai inkaar  ... mujhko siyasat ... se teri...
Tu khud ko .. nazar se ... giraane laga hai ..!!
.

......................................................................'Taruna'...!!!

.




No comments: