आरज़ू
जिसकी मुझे थी ... वो बशर मिलता नहीं...
हैं
सभी मेरे यहाँ पर ...... हमसफ़र मिलता नहीं ;
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ढूंढने
जिसको भी निकली .... मंज़िलें वो सब मिली...
खो
गई हर राह मेरी ....... और घर मिलता नहीं ;
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वापसी
का रास्ता ... आख़िर मैं ढूँढूं किस तरह...
रात
है कितनी अंधेरी .... राहबर मिलता नहीं ;
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चांद
उगता हो जहाँ .... तारे हज़ारों हो खिले...
फूल
मुस्काते सभी हो ... वो नगर मिलता नहीं ;
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दुश्मनों
की बेदिली भी .... काम अब आती नहीं ..
दोस्तों
की दोस्ती में भी .... असर मिलता नहीं ;
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कल
तलक सब साथ थे ... पत्ते .. परिंदे .. डालियाँ...
जो
हरा हर दम रहे .... ऐसा शज़र मिलता नहीं ...!!
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..........................................................................'तरुणा'...!!!
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Aarzoo
jiski mujhe thi .... wo bashar milta
nahi...
Hai sabhi
mere yahan par ... hamsafar milta nahi ;
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Dhoondhne
jisko bhi nikali .. manzilein wo sab
mili ..
Kho gayi
har raah meri ......... aur ghar milta
nahi ;
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Waapsi ka
raasta .... aakhir main dhundhun kis
tarah...
Raat hai
kitni andheri ......... raahbar milta
nahi ;
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Chaand
ugta ho jahan ... taare hazaron ho khile ..
Phool
muskaate sabhi ho ... wo nagar milta nahi ;
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Dushmano
ki bedili bhi ... kaam ab aati nahi ...
Doston ki
dosti me bhi ….. asar milta nahi ;
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Kal talak
sab saath the ... pat'te.. parinde .. daaliyaan..
Jo hara
har dam rahe ...... aisa shazar milta
nahi ...!!
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.........................................................................'Taruna'....
!!!
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