Monday, December 29, 2014

देह से परे...!!!



देह से परे....किसी और धरातल पर..
जो आ सको तो ... मिल जाओ ;
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कब ह्रदय -स्पंदन को ... जानोगे...
मस्तिष्क के तरल उजाले में...
मेरे साथ ही तुम... रोशन होगे...
कब कहे-अनकहे .. शब्दों के..
मर्म को समझ .. पहचानोगे...
कब देह से ... ऊपर उठोगे...
उठ सको तो ... आ जाओ...
देह से परे.. किसी और धरातल पर..
जो आ सको तो आ जाओ ;
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मैं देह होकर ... भी देह नहीं..
तुम कब तक .. देह में ही रमोगे ?
मेरी शक्ति ..भटकती है .. अकेले ही..
कब तुम इसको.. परिपूर्ण करोगे ..?
कब तुम .. शिवत्व को .. प्राप्त होगे ?
कब जग को तुम .. सम्पूर्ण करोगे ?
पहचान सको .. जब स्वयं को तुम..
आकर मुझ से .. मिल जाओ...
देह से परे ... किसी और धरातल पर...
जो आ सको तो आ जाओ ;

.................................................'तरुणा'...!!!
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Deh se pare ... kisi aur dharatal par...
Jo aa sako to .. mil jaao ;
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Kab hriday-spandan ko .. janoge..
mastishk ke taral .. ujaale me..
Mere saath hi tum .. roshan hoge..
Kab kahe-unkahe .. shabdo ke...
Marm ko samajh  .. pehchaanoge..
Kab deh se .. upar uthoge..
Uth sako to ... aa jao...
Deh se pare... kisi aur dharatal par...
Jo aa sako to .. mil jaao ;
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Main deh hokar bhi ... deh nahi..
Tum kab tak .. deh me hi ramoge..?
Meri shakti .. bhatakti hai .. akele hi...
Kab tum isko... paripoorn karoge ?
Kab tum ... shivtav ko .. praapt hoge ?
Kab jag ko tum .. sampoorn karoge ?
Pehchaan sako .. jab swayam ko tum...
Aakar mujh se .. mil jao..
Deh se pare... kisi aur dharatal par...
Jo aa sako to .. mil jaao ;
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……………………....…………’Taruna’…!!!



Saturday, December 20, 2014

न तेल .. न बाती...!!!



मैं वही थी ... थे वही तुम...
कुछ कहीं पर ..  गल चुका था...
तेल .. बाती में .. रहा कम..
दीप शायद.. जल चुका था...!!
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एक पल को .. तो रुका था..
साथ में ... ब्रह्मांड सारा...
नींद जब टूटी .. हमारी...
समय आगे... चल चुका था ;
तेल बाती में... रहा कम... दीप शायद जल.. चुका था..!!
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जोड़े कितने .. हृदय-तन्तु...
रह गई फिर भी... कमी कुछ..
रिस रहे थे .... घाव सारे...
लहू तो .. निकल चुका था ;
तेल बाती में... रहा कम... दीप शायद जल.. चुका था..!!
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क्यूँ शुरू करना... वो क़िस्सा..
बात क्यूँ .. लौटे पुरानी...
चाल बदली है... समय की...
सूर्य भी अब... ढल चुका था.... !!
तेल बाती में... रहा कम... दीप शायद जल.. चुका था..!!
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................................................................................'तरुणा'...!!!
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Main wahi thi ... the wahi tum..
Kuchh kahin par... gal chuka tha..
Tel .. baati me .. raha kam...
Deep shayad... jal chuka tha..!!
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Ek pal ko ... to ruka tha...
Saath me... brahmaand sara...
Neend jab tooti...hamari..
Samay aage ... chal chuka tha ;
Tel .. baati me .. raha kam... deep shayad... jal chuka tha..!!
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Jode kitne ... hriday-tantu...
Rah gayi phir bhi .. kami kuchh..
Ris rahe the ... ghaav saare ..
Lahu to .. nikal chuka tha ;
Tel .. baati me .. raha kam... deep shayad... jal chuka tha..!!
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Kyun shuru karna... wo kissa..
Baat kyun ... laute puraani..
Chaal badali hai ... samay ki...
Surya bhi ab... dhal chuka tha...!!
Tel .. baati me .. raha kam... deep shayad... jal chuka tha..!!
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....................................................................................'Taruna'.... !!!


Tuesday, December 16, 2014

मैं ख़ास हूँ...!!!




बुझ के भी ना बुझी कभी ... अज़ब सी प्यास हूँ...
मर के भी जो मरा नहीं ...... वही एहसास हूँ  ;
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जिसने कभी निबाहें नहीं ... कोई भी रिश्ते ..
हैरत ये कम है क्या के .. अब भी उसके पास हूँ ;
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वो पैरहन कहाँ जो ..  छुपाए .... अमीर को....
ढक ले जो मुफलिसी को ... इक ऐसा लिबास हूँ ;
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उगलते भी न बने औ'  .. निगल पाओ न जिसे..
अटकी हूँ जो गले में ... बनी.. अब वो फांस हूँ ;
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इक खाली देगची में .. माँ .. कलछुल हिला रही ...
मज़लूम भूखे बच्चों की ... मिटती सी आस हूँ ;
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इक आम शख्स थी मैं इस ... सारे जहान में ...
है इतनी ग़नीमत कि लगती... उसको ख़ास हूँ ;
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ज़िन्दा थी जब तलक कभी ..  महसूस न हुई ...
मरते हुए मरीज़ की ..  अंतिम मैं ..  सांस हूँ .... !!
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.....................................................................'तरुणा'....!!!


Bujh ke bhi na bujhi kabhi... ajab si pyaas hun ...
Mar ke bhi jo mara nahi ... wahi ehsaas hun ;
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Jisne kabhi nibaahe nahin... koi bhi rishtey...
Hairat ye kam hai kya ke... ab bhi uske paas hun ;
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Wo pairhan kahan jo .. chhupaye ameer ko..
Dhak le jo muflisi ko ...... ek aisa libaas hun  ;
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Ugalte bhi na bane au'... nigal pao na jisey...
Ataki hun jo gale me .. bani .. ab wo faans hun ;
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Ik khali degchi me ... Maa  .. kalchhul chala rahi ...
Majloom bhookhe bachhon ki  ..mit'ti si aas hun ;
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Ik aam shakhs  thi main ...is  ..saare jahan me ...
Hai itni ganeemat ki lagti .... usko khaas hun ;
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Zinda thi jab talak ..... kabhi mehsoos na hui ...
Marte huye mareez ki .. antim main .. saans hun...!!
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......................................................................................'Taruna'..!!!


Wednesday, December 10, 2014

मुमकिन ही नहीं...!!!



मैं तुझे दिल से भुला दूं .... क्या ये मुमकिन होगा ..
ख़ुद गले मौत लगा लूं  ... क्या ये मुमकिन होगा ;
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तूने तो रुसवा किया है ...  मुझे कितनी ही दफ़ा...
आँख से मैं भी गिरा दूं .... क्या ये मुमकिन होगा ;
 .
बिजलियाँ कितनी गिराता है ... ये बादल मुझपे...
अबके इसको ही जला दूं .. क्या ये मुमकिन होगा ;
 .
ये सफ़र बाक़ी है .... पर रात तो घिर आई है ..
आज तो ख़ुद को सुला दूं ... क्या ये मुमकिन होगा ;
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सोचती हूँ के मुकर्रर करूं .... अब तेरी सज़ा....
तेरी याद़ों को मिटा दूं ... क्या ये मुमकिन होगा ;
 .
कोई अब नींव नहीं ... रंग है.. रोगन है बचा...
इनमे ही ख़ुद को मिला लूं .. क्या ये मुमकिन होगा ;
 .
आज तो दर्द का सैलाब  .... उमड़ आया है...... 
चल 'तरु'  तुझको बहा दूं ... क्या ये मुमकिन होगा ..!!

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...........................................................................'तरुणा'...!!!

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Main tujhe dil se bhula dun... kya ye mumkin hoga ..
Khud gale maut laga lun ... kya ye mumkin hoga ;
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Tune to ruswa kiya hai mujhe .... kitni hi dafa ...
Aankh se main bhi gira dun .. kya ye mumkin hoga ;
 .
Bijliyaan kitni girata hai ... ye baadal mujhpe...
Abke isko hi jala dun ... kya ye mumkin hoga ;
 .
Ye safar baaki hai ... par raat to ghir aayi hai..
Aaj to khud ko sula dun ... kya ye mumkin hoga ;
 .
Sochti hun ke mukrrar karun ... ab teri saza ..
Teri yaadon ko mita dun ... kya ye mumkin hoga ;
 .
Koi ab neenv nahin ... rang hai ..rogan hai bacha ..
Inme hi khud ko mila lun .. kyayemumkin hoga ;
 .
Aaj to dard ka sailaab ... umad aaya hai ...
Chal 'Taru' tujhko  baha dun ... kya ye mumkin hoga ..!!

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.......................................................................................'Taruna'...!!!



Tuesday, December 2, 2014

गलती बर्फ़.... !!!



रिश्तों में जमी बर्फ़ ......  गलाने में लगी हूँ ....
ज़ख्मो को अपने फिर से ... छुपाने में लगी हूँ ;
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वैसे तो मैं ... रही हूँ ... तन्हाई की मुरीद ....
तन्हाइयों से खुद को …. डराने में लगी हूँ ;
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मुमकिन नहीं है अब ... दिल-ए-वीरां का संवरना...
घर को मैं अपने फिर से .... बसाने में लगी हूँ ;
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रातें तो कट ही जायेंगी .... याद़ों के सहारे ....
दिन अपने मुसलसल मैं ... सजाने में लगी हूँ ;
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झूठे भरम पे कोई  ..... भरोसा नहीं रहा ...
अब सच की राह खुद को .... चलाने में लगी हूँ ;
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पूछे न कोई हाल ‘तरु’ का ... ख़ुदा करे ...
कुछ और है.. कुछ और ... जताने में लगी हूँ..!!
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...................................................................................’तरुणा’...!!!

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Rishton me jami barf ……. Galaane me lagi hoon…
Zakhmo ko apne phir se … chhupaane me lagi hoon ;
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Waise to main rahi hoon …. Tanhayi ki mureed …
Tanhaaiyon se khud ko …. Daraane me lagi hoon ;
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Mumkin nahi hai ab … dil-e-veeraan ka sanwarna…
Ghar ko main apne phir se … basaane me lagi hoon ;
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Raatein to kat hi jaayengi …. Yaadon ke sahaare …
Din apne musalsal main …. Sajaane  me lagi hoon ;
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Jhoothe bharam pe koi  …. Bharosa nahi raha …
Abs ach ki raah khud ko … chalaane me lagi hoon ;
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Poochhe na koi haal ‘Taru’ ka …. Khuda kare ….
Kuchh aur hai .. kuchh aur ..  jataane me lagi hoon ..!!
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……………………………………………………………………………………………….’Taruna’…!!!