Sunday, April 13, 2014

वक़्त का घोड़ा... !!!



जब से उनके रस्ते से.... अपने को है मोड़ा...
उनकी अना को झटका ... लगा तो है थोडा...

मसलाहात ज़िंदगी के ... सुलझा तो लेतें हम..
उसमें भी गुणा-भाग ... तूने ही तो है जोड़ा..

परछाई बन के चलती थी....कभी पीछे मैं तेरे...
न ख्व़ाब की ताबीर हूँ ..... न अब कोई रोड़ा...

ठहरा है ये वक़्त कब .... कभी किसी के लिए...
चौगुनी रफ़्तार से दौड़े है... ये वक़्त का घोडा...

चुनती रही मैं कांटे जब... तो कद्र नहीं की....
अब फूल बिछाना तेरी.... राहों पें हैं छोड़ा....

अब ढूंढ न मुझको तू... उस वीरां से महल में...
न मिलेगी 'तरु' अब कही.. वो तिलिस्म है तोडा..

...........................................................'तरुणा'...!!!

Jab se unke raste se ... Apne ko hai moda...
Unki ana ko jhatka .... Laga to hai thoda...

Maslahat zindgi ke ... Suljha to letey ham..
Usme bhi to guna-bhaag.. Tune hi to hai joda..

Parchhayi ban ke chalti thi...Kabhi peechhe main tere..
Na khwaab ki taabeer hoon ..... Na ab koi roda....

Thahra hai ye waqt kab.... Kabhi kisi ke liye...
Chauguni raftaar se daude hai...Ye waqt ka ghoda..

Chunti rahi main kaante jab ... To qadr nahi ki....
Ab phool bichhaana teri... Raahon pe hain chhoda...

Ab dhoondh na mujhko too.. Us veeraan se mahal me..
Na milegi 'Taru' ab kahin ..... Vo tilism hai toda..

..........................................................................'Taruna'...!!!

4 comments:

संजय भास्‍कर said...

बहुत खूब बहुत ही लाज़वाब अभिव्यक्ति आपकी। बधाई

taruna misra said...

sanjay ji bahut hi bahut shukriya.. :)

neha said...

hamesha ki tarah behad umda .... behad bhavpoorn aur sundar shabd

Unknown said...

वाह ! एक पीड़ा जो दर्द के रस्ते बाहर की दुनिया से टकराता है तो वक्त का घोडा यूँही कुछ दूर निकल जाता है।