कोहेनूर सा दमकता है .. वो सारे नगीने में...
खुद्दारी का इत्र महके है .. उसके पसीने में....
कुछ तो कहेगा वो भी .. क्या चुप रहेगा यूँ ही....
क्या बारिश भी न होगी... सावन के महीने में ...
वो ढूंढता है मुझको ...... गलियों-औ-चौबारों में..
इक बार तो झांक लेता ..जरा अपने ही सीने में ..
यूँ अलग-थलग से हम-तुम..इक राह में चलते हैं..
न लुत्फ़ कोई तुझको .. न मज़ा मुझे जीने में...
ये इश्क़ के मरहलें हैं .. क़दम क्यूँ थक चले हैं...
गर बंदगी है सच्ची ...तो ख़ुदा मिलेगा मदीने में ...
....................................................................'तरुणा'.... !!!
Kohenoor sa damakta hai .. vo saare nageene me ...
Khuddari ka itr mehke hai ... uske paseene me ...
Kuchh to kahega vo bhi .. kya chup rahega yun hi ...
Kya baarish bhi na hogi ... saawan ke maheene me ...
Vo dhoondhta hai mujhko... galiyon-au-chaubaaron me ..
Ik baar to jhaank leta ..... jara apne hi seene me ....
Yun alag-thalag se ham-tum.. ik raah me chalte hain ..
Na lutf koi tujhko .... na maza mujhe jeene me ....
Ye ishq ke marhale hain ... kadam kyun thak chale hain..
Gar bandgi hai sachhi ... to Khuda milega Madeene me ...
......................................................................................'Taruna'...!!!
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