अल्फ़ाज़ जाने कितने ... मुंह में अटक रहें हैं....
कितने ही किस्से रस्ते में ... मेरे भटक रहें हैं...
बारिश..तूफ़ान इतने क्यूँ आए.. पता चला अब..
ज़ुल्फ़ें उन्होंने खोली... वो बादल झटक रहें हैं..
निगाहें मिली हैं जब से .. उस ज़ालिम से मेरी..
ग़ज़ले बहक रहीं हैं ...और शेर भटक रहें हैं...
चिलमन के पीछे जाके ... क्यूँ छुप गया है वो...
मुश्किल से जुदाई का .. हम गम गटक रहें हैं..
नज़रो से तेरी पहले ही ... बेहोश है ये दुनिया...
नींद आती नहीं है न ही..कोई ख्व़ाब फटक रहें हैं..
सुखन 'तरु' के अब तो .. उनको भी खटक रहें हैं..
क़ैद रखा जिसमे मुझको .. वो किलें चटक रहें है...
.................................................................'तरुणा'.... !!!
Alfaaz jaane kitne .... munh me atak rahen hain..
Kitne hi kisse raste me .. mere bhatak rahen hain..
Baarish .. tufaan itna kyun aaye .... pata chala ab...
Zulfen unhone kholi .... vo baadal jhatak rahen hain...
Nigaahen mili hain jab se .... us zaalim se meri ...
Ghazlen bahak rahin hai.. aur sher bhatak rahen hain..
Chilman ke pchhe jaake .. kyun chhup gaya hai vo..
Mushqil se judaayi ka ... ham gam gatak rahen hain..
Nazron se teri pahle hi.... behosh hai ye duniya...
Neend aati nahi hai na hi.. koi khwaab fatak rahen hain..
Sukhan 'Taru' ke ab to ... unko bhi khatak rahen hain..
Qaid rakha jisme mujhko.. vo qile chatak rahen hain..
................................................................................'Taruna'... !!!