बार बार पिया ने
पुकारा...करके कुछ इशारा...
प्यार का मौसम
है....झूमता चमन है सारा...
कहो कोई तो उसे जाके...न मेरे दिल में झांके...
कहे है मुझसे
बैरी...तुझे अपने घर की पड़ी है...
मौसम है बड़ा
सुहाना...माना ये हमने माना...
भीनी भीनी
फुहारें हैं....बहारे खिली पड़ी है....
शब बीत रही
है.....धीरे धीरे...हौले हौले....
ऐसे में अकेले...घर
से न निकलने की घड़ी है.....
चमन झूम रहा
है.....मेरा भी मन तरस रहा है....
हर तरफ़ जैसे नूर
कोई..झनझना के बरस रहा है...
कैसे आऊँ काली है
रतिया...सूनी पड़ी है डगरिया.....
मिलनें आऊँ मैं कैसे...बिज़ली जोर की चमक पड़ी है..
चल तो दूँ साथ
तेरे...कुछ तो गम है मुझे घेरे...
कुछ ज़माने का भी
है डर...कुछ ये बादल घनेरे...
राहें हैं सुनसान अंजानों का डर..कही आहट भी हुई है..
ऐसे में ये मेरी...निगोड़ी पायल भी बज पड़ी है....
.................................................................तरुणा.....!!!
4 comments:
ये निगोड़ी पायल भी ना, तरुणा जी........
Hahahaaa... Jee haan... R K Tiwari ji... Saare bhed khol deti hai.. Shukriya.. :)))
बहुत सुन्दर ...
D P Singh Saahab... bahut Shukriya.. :))
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