तुम चले गए...जिस
मोड़ से मुड़कर....
वो पल... वो
लम्हा...मेरे दिल से गुज़रता रहा...
इक दीवार हल्की
सी ही तो थी...हमारे दरमियाँ....
न कोशिश की मैंने
भी...न हाथ तुमने ही बढ़ाया....
साल बदला...महीने
बदले...दिन और हालात भी बदलें....
न बदला कहीं कुछ
तो...तुझसे मेरा प्यार न बदला....
तेरी हर वो
बात...वो रात...मुझसे हर घड़ी गुज़रती रही....
वक़्त ने बालों
में...चांदी भर दी....
पर इस दिल से
तेरी याद़ों की...रोशनी न बुझ सकी....
वक़्त बीतता
गया....मुझपे गुज़रता गया....
क़ीमत कुछ न
रही...मैं ख़र्च होती गई.....
फ़िर भी तू मेरे
ज़ेहन-ओ-दिल से नहीं मिट सका....
वो मोड़ आज तक
है...मुझसे जुड़ा हुआ.....
मन करता है..अब
भी मेरा..मिटा दूं वो फ़ासला....
सिर्फ़ एक झीनी सी
दीवार...ही तो थी....
क्या बढ़ा दूं मैं
हाथ...क्या लेगा तू थाम....
इस कशमकश
में...ज़िंदगी...ज़िंदगी न रही.....
मैं रह गई...उस
मोड़ पे...खड़ी की खड़ी.....
.......................................................'तरुणा'....!!!
6 comments:
सुन्दर शब्द संयोजन , एक सुन्दर अभिव्यक्ति वाह
bahut shukriya.... Shekhar ji... :)))
wah di bahut khub itani sundar rachana oh god kya likha hai aapne har sabd ufffff rula diya aapne great di
Shiv Bhaiya.... bahut Shukriya ..ki aapko meri kavita pasand aayi...:)
बेहतरीन ,,,,,,,
Rajesh ji...bahut Shukriya... :))
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