कब मिलूँ मैं
तुमसे.....
जब भी तुम
बुलाओगे...आ जाऊँगी वहीँ....
दौड़ती
भागती....तुम्हारे पास....
पर होना चाहिए
तुमको भी...ये एहसास....
मिलें तो हम जी
भर कर...
सारी
मान्यताओं...परम्पराओं को तोड़कर....
कोई भी न
हो...सौन्दर्य का आवरण....
किसी तरह
का...कृत्रिम वातावरण....
कैद न हो
हम...किसी झूठ में...
मिलें न सत्य
से....रूठ के...
मेरी रूह की
पवित्रता....
तेरे जिस्म की
मादकता.....
मिल जाए
कुछ...ऐसे....
रूह की पवित्रता
मेरी...तेरे ज़िस्म में झलके...
ज़िस्म की मादकता
तेरी..मेरी रूह में छलके...
और...तेरा ज़िस्म
बन जाए...मेरी रूह....
मेरी रूह समां
जाए...तेरे ज़िस्म में....
तू मेरे पवित्र
प्यार को....समाहित कर ले....
मैं तेरे मदहोश व्यक्तित्व को खुद में...प्रवाहित कर लूँ...
तू कुछ...'मैं' बन जाए...
और 'मैं' कुछ 'तू'...
जिस दिन तुम होगे तैयार.....
तोड़ने को बनावट
की दीवार....
होंगे असलियत
से...रूबरू....
भीग रहें
होंगे...साथ साथ....बस 'मैं' और 'तू'...
बस मैं और
तू.....
प्यार में......
.....................................................'तरुणा'....!!!