Monday, February 25, 2013

हमारा मिलन....


कब मिलूँ मैं तुमसे.....
जब भी तुम बुलाओगे...आ जाऊँगी वहीँ....
दौड़ती भागती....तुम्हारे पास....
पर होना चाहिए तुमको भी...ये एहसास....
मिलें तो हम जी भर कर...
सारी मान्यताओं...परम्पराओं को तोड़कर....
कोई भी न हो...सौन्दर्य का आवरण....
किसी तरह का...कृत्रिम वातावरण....
कैद न हो हम...किसी झूठ में...
मिलें न सत्य से....रूठ के...
मेरी रूह की पवित्रता....
तेरे जिस्म की मादकता.....
मिल जाए कुछ...ऐसे....
रूह की पवित्रता मेरी...तेरे ज़िस्म में झलके...
ज़िस्म की मादकता तेरी..मेरी रूह में छलके...
और...तेरा ज़िस्म बन जाए...मेरी रूह....
मेरी रूह समां जाए...तेरे ज़िस्म में....
तू मेरे पवित्र प्यार को....समाहित कर ले....
मैं तेरे मदहोश व्यक्तित्व को खुद में...प्रवाहित कर लूँ...
तू कुछ...'मैं' बन जाए...
और 'मैं' कुछ 'तू'...
जिस दिन तुम होगे तैयार.....
तोड़ने को बनावट की दीवार....
होंगे असलियत से...रूबरू....
भीग रहें होंगे...साथ साथ....बस 'मैं' और 'तू'...
बस मैं और तू.....
प्यार में......

.....................................................'तरुणा'....!!!


Friday, February 22, 2013

मेरा काम.....


लोग अक्सर पूँछतें हैं....मुझसे....
ख़ाली हो....जिम्मेदारियां भी हो गई हैं...कम...
न करती हो नौकरी.....न हैं...कोई भी...काम...
करती कैसे हो अपना....समय...व्यतीत....
क्या वक़्त जाता है....तुम्हारा बीत...???
अब क्या कहूँ....मैं....क्या बताऊँ.....??
किस किस को....मैं ये समझाऊँ.....?
कि..समय तो मुझे है...कम पड़ता.....
दिन में 25 घंटे होते...तो वो भी चलता....
न मैं....खाली हूँ....न ही बेकार.....
न ही बहाती हूँ...आंसू ज़ार-ज़ार.....

मुझे तो फुरसत ही नहीं है....तेरी याद़ों से....
जो तूने किये थे कभी...उन वादों से.....
तेरी याद़ों को यूँ संजो कर...रखा है.....
तुझे भी न पता है...कितना सहेज रखा है....
रोज़-रोज़ उनको झाड़ती...पोंछती...धोती हूँ....
तार पर डाल...धूप में सुखाती हूँ....
शाम होते ही...उनको तहा कर के.....
सहेज लेती हूँ...दिल की अलमारी में रख कर...मैं...

कभी सर्दियों की धूप में घुमाती हूँ..
तो कभी...बारिश के पानी में...भिगोती हूँ...
गर्मियों की सुनहरी सुबह में....जगाती हूँ...
तो हर सुहानी शाम में...अपने साथ टहलाती हूँ...
उनको पढना...लिखना...गाना...गुनगुनाना...
कभी कभी डराना.....या मुंह भी चिढ़ाना.....
जब तंग करतीं हैं....बहुत ज्यादा मुझे....
तो डांटती भी हूँ....चपत लगाती हूँ उन्हें....
रोज़ अपनी बाहों में...भर कर सुलाती हूँ....
दूर न हो जाएं मुझसे...जी भरकर बहलाती हूँ...

कम पड़ जाता है...वक़्त मेरा वरना....
चाहती तो हूँ...और भी बहुत कुछ करना...
और भी ज्यादा...पालती-पोसती उनको....
अपने तन-मन में...और सोचती उनको....
और लोग कहतें हैं....तुम खाली हो....
कैसे कहूँ...कि...नहीं...नहीं....नहीं...
तेरी याद़ों के लिए भी वक़्त...कम हैं...कहीं....
कम है कहीं...कम है...कहीं....
......................................................'तरुणा'......!!!





Tuesday, February 19, 2013

मेरा डर....


काँप जाती थी...तब मैं अक्सर...
कोई देख लेता था जो...जी भर कर...
डर लगता था उन की आहों से.....
ऐसी अंजानी..कंटीली राहोँ से....
बैठ जाती थी मैं...खुद में छुप कर....
काँप जाती थी...तब मैं अक्सर....

अब ये आया..कौन सा हमसाया है....
जिसने बंद दरवाज़ा ये...खटखटाया है....
डरती मैं क्यूँ नहीं हूँ...अब इससे....
दिन-रात सुन के भी...प्यार के किस्से....
बैठती नहीं क्यूँ अब..द्वार बंद कर.....
काँपती नहीं हूँ मैं अब...अक्सर....

रोशनी ये है...किसके चराग की....
भर गई है महक..किसके पराग की...
छंट गई धुंध...मेरे भाग्य की....
धूल भी नहीं है...किसी राख़ की...
ख़ुद से करती हूँ अब...प्यार...
मैं तो ख़ूब...जी भर कर....
काँपती नहीं हूँ मैं अब...अक्सर....

मन उड़ा जाता है अब...और कहीं...
ख़ुद की किस्मत पे न आए हैं...यकीं...
क्यूँ नए स्वप्न देखती हूँ..जाकर के वहीँ...
जहाँ रहता है दिलदार मेरा..घर कर...कर...
महकती रहती हूँ मैं तो..अब दिन भर-भर...
काँपती नहीं हूँ मैं...अब अक्सर...
कांपूगी भी नहीं अब मैं...डर कर.....

.......................................................तरुणा....!!!

Friday, February 15, 2013

दो मौसम....


मौसम फिर आज.....बड़ा खुशनुमा है....
भीनी भीनी ख़ुशबू में....डूबा ये समां है....
तेरे एहसास की....बसंती बयार.....
मेरे जज्बातों की....सावनी फुहार....
मिल रही है....कुछ ऐसे....
बरसों के प्यासे को अमृत...मिल जाए जैसे....
मखमली एहसास.....तेरे ख़ुमार का....
रेशमी जज़्बात....मेरे प्यार का...
फ़िर मिल रहें हैं....झूम के यूँ...
हर तरफ़....नाच रहा है...मन-मयूर क्यूँ...
खुलने लगा है....मेरे दिल का झरोखा....
दो मौसमों का मिलन...है कुछ अनोखा....
भीगने लगा है...मन सावनी फुहारों में....
तेरी मौजूदगी की...बसंती बयारों में....
बौछारें तन मन पर कर रहीं हैं...जैसे ज़ादू...
डूबने लगी हूँ मैं....अब फिर न हैं...कोई क़ाबू....
कोई भी क़ाबू......न अब रहा है.....
बस मिलन हो रहा है....
आज फिर दो मौसम का.....
प्यार मे डूबे.....बसंत और सावन का....
दो मौसम....प्रेम मे भीगे....रस मे डूबे...
मेरी और तुम्हारी तरह....

.....................................................'तरुणा'.....!!!



Wednesday, February 6, 2013

भीड़.....


कभी यूँ भी होता है...
गुज़र रही होती हूँ...मैं भीड़ से...
अंजान चेहरे....बेगाने स्पर्श....
जैसे हज़ारों नाग...जाते हैं मुझको डस..
वो तीख़ी निगाहें...वो बदबू भरे पसीने...
लगता हैं अब न देंगे...ये मुझको जीने...
वो शोरोगुल का माहौल....
कर जाता है..इस जग से बेगाना...
एक घिन...एक वितृष्णा सी उठती हैं....
और कुछ न रहता है...अपना...
चल नहीं पाती हूँ...उस भीड़ के घेरे में...
मैं सिमट जाती हूँ....फिर अपने दायरे में...
डर लगने लगता है अब...मुझको इस भीड़ से...

और ऐसे मे.....
तुम आ जाते हो...एकदम पास मेरे....
सटाकर मुझको अपने ज़िस्म से...
अपनी बाँहो के घेरे को...मेरे इर्द-गिर्द फैला के..
बचा लेते हो..उन बेगाने लोगों से...
उनके उस घृणित स्पर्श से...
जैसे किसी कवच मे..घिर जाती हूँ मैं...
तुम्हारे प्यार से बँध जाती हूँ मैं...
तुम्हारे बदन की ख़ुश्बू मे...
वो बदबू घुलने लगी है....
सहारा तेरी बाँहो का है...मुझको...
ये घुटन अब छटने लगी है....
हो जाती है...मेरी शामों की सहर...
अब न लगता है...मुझे इस भीड़ से डर.....
अब नही लगता है डर....कोई डर....
इस भीड़ से डर......
........................................तरुणा||

Saturday, February 2, 2013

डोर....


मैं छिपी थी....
गहरें कुएँ में कहीं....
घुप्प अंधेरें में...
सीलन भरी थी चारों ओर....
मैं खुद गल रही थी...वही...
माहौल बदबू भरा हुआ था....
सब कुछ आस पास सड़ रहा था...
खो जाती...मैं बेचारी...
उस अंधे कुएँ में...कहीं...
पर अचानक तुम कही से....
डोर बन कर आ गए....
खींच कर मुझको वहां से....
रोशनी दिखला गए.....
अब न वो सीलन हैं.....यहाँ...
न घुप्प अँधेरा हैं..कहीं..
बस खुली हवा में हूँ...मैं...
जी रही हूँ.....ज़िंदगी....
सड़न...बदली हैं..सृजन में...
बदबू बनी हैं...अब ख़ुशबू...
रोशनी बिखरी हैं...हर सूं....
भीग रहें हैं....मैं और तू....
बस...मैं और तू....
...........................'तरुणा'....!!!