तड़प...तरस..कसकती
रह...जीवन भर...यूँ ही...
सरे
बाज़ार...तमाशा..बनवाती रह..अपना ही...
ताने
सुन...गालियाँ खा..या सह जा..चाबुक़ भी..
तेरे गुनाह की...हर
एक सज़ा...तो कम है ही....
गिरती रह दुनिया
की निग़ाहों में...सरे राह ऐसे..
लोग कहतें
रहें..दीवानी..पागल..या कुछ और भी...
उंगलियाँ उठती
रहें....लोग हँसते रहें तुझ पर...
ज़ुर्म है ऐसा
ही..क़ुसूर तेरा कुछ कम तो नहीं...
मारें पत्थर...या
रुसवा करें....दुनिया में तुझे....
सज़ा जितनी भी
मिलें..गुनाह कोई छोटा तो नहीं...
दोष बस...है ही
तेरा....मोहब्बत जो की है तूने...
अब इससे बड़ा
ज़ुर्म...इस ज़माने में और है नहीं...
तू पाएगी
सज़ा...ज़िंदगी भर...अपने इस ज़ुर्म की...
हाँ..की हैं तूने
मोहब्बत..मोहब्बत..और कुछ भी नहीं...
........................................................'तरुणा'...!!!
8 comments:
Sundar
Vinay jii....Bahut shukriya...:)
Apratim taruna ji
Bahu bahut shukriya...par agar aap apna naam bhi batate to jyaada achcha lagta....:)
bahut acha likha hai Trurima mam apne
Bahut bahut shukriya....Ahmad Ansari'Hindu' saaheb....aapko pasand aayi...is ke liye....
Tarunima...mere Blog ka naam hai...mera naam...Taruna Misra hai...:).:).:)
Very Impressive & Touchng
Yogesh jii....bahut shukraguzaar hoon...:)
Post a Comment