Monday, January 21, 2013

मेरे दिल का कोना.....


समय कुछ भी...कहानी कहे...
अनकही...अनजानी कहे.......
जिंदगी सुनाए कुछ भी फ़ैसला....
मेरे हक़ में....या मेरे ख़िलाफ
तुम प्यार करो....या चाहे दो जितना ही दर्द...
पास आओ...या दूर हो कितने भी ए हमदर्द...
भली-भांति एक बात...जानती हूँ मैं...
कि मेरे दिल के एक कोने में...तुम रहोगे सदा
हमेशा-हमेशा.............सदा.......सर्वदा....

एक दिन उन्होंने हँस के पूछा....
और...बाकी में....
कौन रहता है....बाक़ी हिस्सों में....
क्या समझाऊँ उनको...कैसे बतलाऊँ उन्हें...
कि मेरा दिल...बहुत बड़ा है....
पर इसमें कोई जगह...न खाली है.....
एक हिस्से में...रहतें हैं..वो...
और बाक़ी में....कहीं उनकी याद....
कहीं उनका ख़याल....कहीं दर्द...
कहीं उनकी..जगाई प्यास...
तो कहीं महकती हुई...साँस....
कहीं तो तड़प...कसक....और प्यार ने डाला डेरा है...
दिल का कोई भी कोना...न मेरा है...
उनकी आरज़ू ...तमन्ना...चाहत ने...
ऐसे जगह बनाई है.....
लगता है मुझको...कभी कभी...
कि मेरी रूह भी..इस दिल के लिए पराई है...

कहने को तो दिल..बहुत बड़ा था मेरा....
पर ठूंस ठूंस कर...भरीं हैं...ये सब...
और कई तो...अभी भी प्रतीक्षित हैं...
उनकी जुदाई...बेरुख़ी...अलगाव...को तो...
कहीं भी जगह..न मिल पाई है....
उनकी बहुत सी चीज़ें....
अभी भी...क़तार में हैं...
और वो पूछतें हैं...मुझसे...
बाक़ी कौन कौन से हिस्से....
दूसरों के...प्यार में हैं.....
दूसरों के.....प्यार में हैं....
..................................तरुणा'....||

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