Friday, January 18, 2013

वो मदमस्त आवाज़......


तुम्हारी वो मदमस्त....आवाज़...
पड़ती है...जब भी मेरे कानों में....
मुझको पीर...देती हैं....
कहीं गहरें तक...चीर देती हैं...
मैं...हो जाती हूँ...खुद से अलग....
इस सारे जहाँ से....विलग....
चल पड़ती हूँ...उस आवाज़ के पीछे पीछे....
उस भ्रम को..विश्वास से सींचे....
पूरे जहाँ में...मैं घूम आती हूँ....
तुमको फिर भी कहीं न पाती हूँ....
होता है जब...तुम्हारे न होने का एहसास...
दिलाती हूँ बार बार...मन को विश्वास...
की था ये केवल मेरा भ्रम....
न थे सत्य तुम...एक झूठ ज़ी रहें थे हम...
मन को विश्वास होने लगता है...धीरे धीरे....
ऐसे में फ़िर आ जाती है...तन्हाई को चीरे...
मैं फ़िर...ज़िस्म से अलग हो उठी हूँ....
इस दुनिया से..विलग हो चुकी हूँ...
चल पड़ी हूँ....उसी डगर में...
किसी अंजान से नगर में...
उसी आवाज़ के पीछे पीछे...
वही भ्रम पाले...उसी को सींचे....
दूर...बहुत दूर...सबसे दूर....
.........................................'तरुणा'.....!!!


2 comments:

Anonymous said...

Tarunaji ,Aap ki kalam hai ya jadui lekhni... bahut khoobsoorti se bayaan karti hain ... :)

RozRoseSmile/ Prajwal

taruna misra said...

Bahut bahut shukriya....Roz Rose Smile ji.....:)