ज़िंदगी में यूँ
ही .. हम तो चलते गए...
दर्द जितने मिले
... वो भी पलते गए ;
तेज़ रफ़्तार
से .... दौड़तें हैं सभी ...
सारे एहसास भी ...
यहाँ गलते गए ;
अपनी तन्हाई पे
... मैं न रोई कभी...
उनमें ढलती गई
... लफ्ज़ मिलते गए ;
साथ खुद का तो
था.. और मिला न कोई..
लोग क़तरा के
मुझसे ... निकलते गए ;
ना मुहब्बत सही
.... कोई गम भी नहीं...
जिनको चाहा कभी
... वो ही जलते गए ;
अपने ज़ख्मों को
तूने... सहेजा तो है..
चोट खाती
रही ... घाव सिलते गए.. !!
....................................................'तरुणा'....!!!
Zindgi me yun hi ... ham to chalte gaye..
Dard jitne mile ... vo bhi palte gaye ;
Tez raftaar se ... daudtein hain sabhi..
Saare ehsaas bhi ... yahan galte gaye ;
Apni tanhaayi pe .. main na royi kabhi..
Unme dhalti gayi ... Lafz milte gaye ;
Saath khud ka to tha... aur mila na koi...
Log katra ke mujhse ... nikalte gaye ;
Na muhabbat sahi ... koi gam bhi nahi..
Jinko chaha kabhi ... vo hi jalte gaye ;
Apne zakhmo ko tune ... saheja to hai ..
Chot khati rahi ... ghaav silte gaye .. !!
...........................................................'Taruna'...!!!