Sunday, September 22, 2013

मेरी सर्जना.... !!!



माँ...ओ माँ...
चौक उठी मैं.. ये आवाज़ सुनकर..
कौन है...? किसने पुकारा मुझे...?
आगे कदम बढ़े ही थे..
कि वही आवाज़....वही अंदाज़...
ये मैं हूँ... मैं....!!!
मैं समझ ना पाई कुछ...
कौन है....? पुकारता है जो मुझे...
माँ...मैं हूँ तुम्हारी परछाई...
अब तक जिसे तुम....
दुनिया में नही लाई...
हाथ रख अपनी... कोख पर 
महसूस करो मुझे....मैं हूँ..
तुम्हारी ही.. सर्जना
नव कोंपल सी ...ले रही हूँ..
मैं अंगड़ाई....!
जीवन है मुझमे भी..
जन्म ना लिया तो क्या....?
महसूस करती हूँ ....संसार को
छू ना पाई उसे तो क्या...?
समझती हूँ माँ...मैं..
तुम्हारी भावनाओ को...!
मत रोको... मेरी उड़ान को
इन कोमल कल्पनाओ को....!
माँ....जन्म दो मुझको..
मत अपनी कोख को... कलंक लगाओ..!
मैं भी हूँ...खुदा का नूर ..
मुझे ना... यूँ ठुकराओं...!
चौंकी मैं...काँप गई ये सुनकर...
मिटाने चली थी खुद...ख्वाबो को बुनकर....!
क्यूँ ना सुन रही थी....अपनी ही धड़कन को...
ईश्वर के वरदान को... और अपने सृजन को...
कोई कुछ भी कहे...
या करे जोरो-जबर...
लाऊंगी ...अपनी कृति को
दूर करके हर भंवर..
भरूँगी नवरंग ...अपनी तस्वीर मे
बनूँगी अलहदा ...दुनिया की भीड़ में
ना मरेगी बेटी... कोई अब..
अपनी माँ की ...कोख में
बढ़ूंगी इस दिशा में...मैं...
प्रयास करूँगी... इस ओर में..
.........................इस ओर में.... !!!
..................................................'तरुणा'......!!!

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