क्या क्या न देखा...अबकि इस आस्था के सफ़र में...
कहीं तूफां में उजड़ते...घर-दरख्त देखे......
कहीं माँ-बाप का हाथ छोड़...बहते बच्चे देखे....
कहीं भूख से....तड़पते मरते...मंज़र देखे.....
इंसानों की बनाई दुनिया...पल में उजड़ती देखी....
बौराई खौफ़नाक प्रकृति की...अभिव्यक्ति देखी...
कहीं अपनों को न बचा पाने की...लाचारी देखी.....
कहीं ईश्वर की आस्था से उठता...विश्वास देखा...
तो कहीं पथराई आँखों में..दम तोड़ती आस देखा...
कहीं इस घड़ी में...आरोपों-प्रत्यारोपों का प्रयास देखा...
हमने पत्थर के ख़ुदा...इंसां में छुपे जानवर देखे.....
लोगों के आंसू पोछतें...इंसां-रुपी ख़ुदा देखें.....
दुआ में उठतें हाथ...तो किसी की दुआ बनते इंसां देखें...
बस नहीं देखना अब...और ये आस्था के नाम का चक्कर...
छोड़ें ये मंदिर मंदिर भटकना...और धर्म का ये सफ़र.....
मन-मंदिर को देखें...और बसायें प्यार का नगर......
शुरू करें अपने ही अंदर...नर से नारायण की यात्रा......
इंसान हैं..पहचानें ख़ुद को..कम करें दुर्गुणों की मात्रा...
स्वयं प्रकाश हैं हम...प्रकाशित है हमारी हर जात्रा......
....................................................................'तरुणा'....!!!