कुछ दिन हुए हमें
मिले हुए....
इससे पहले तो हम
अज़नबी थे....
कुछ तुमसे रिश्ते यूँ जुड़ गए....
जैसे तुम मेरे
लिए ख़ुदी थे.....
मेरी साँसों
का....हर एक तार.....
हर घड़ी करता हैं....तेरी पुकार....
एहसास हर ओर
अब....तुम्हारा है....
दिल मेरा खुद से
ही.....बंजारा है....
हर ज़ज्बात अब तक
क्यूँ.....राख़ बुझी थे....
इससे पहले तो
हम...अज़नबी थे...
अब विरह की आग
में जलती हूँ मैं....
बिन डोर की पतंग
सी...उड़ती हूँ मैं...
गिरूँ तो वहीँ
तुम्हारी आगोश में....
शब्द बन जाऊँ इस
रिश्ता-ए-ख़ामोश में...
मन वीणा के तार
की धड़कन...अनसुनी थे....
इससे पहले तो
हम...अज़नबी थे....
...........................................तरुणा....||
6 comments:
Nice poem
Rohit Kumar Ji .... Bahut bahut Shukriya ... :)))
bahut sahi ..
Kalpana Gupta Jii ... Soo many thanksss ... :)))
sunder kavita :)
Bahut Bahut Shukriya ... Narayan Dutt Saahab ...:)))
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