Sunday, March 31, 2013

मृगतृष्णा.....


क्यूँ ढूंढती फ़िर रही हूँ मैं....तुमको...
शहर शहर....गली गली...
कभी इस नगर...कभी इस नगर...
कभी सड़कों...गलियों...चौबारों में...
कभी अपने...और दूजे द्वारे में...
पर मिलते नहीं हो...तुम कभी...
न यहाँ..न वहां....
न किसी पल...न किसी घड़ी....
ये क्या है...
मेरी कोई अतृप्त आकांक्षा....
या कोई...अधूरी ख्वाहिश....
जो ढूंढती फिर रही हूँ...तुम्हे..हर जगह...
जबकि...तुम कही और...हो नहीं...
जो देखी हज़ारों जगहें....वहां छुपे ही नहीं....
बस रहे हो तुम तो...मुझमे कहीं...
छुप रहे हो....मेरे दिल में यूँ ही....
और मैं...भटक रही हूँ...मृगतृष्णा में...
अपने ही अंतस से आती...ख़ुशबू में....
हैरान हूँ मैं....परेशान हूँ मैं...
तभी तो तुम्हें...पाके भी..नहीं पाती...
जीना चाहती हूँ तुम्हें...पर जी नहीं पाती...
क्यूंकि...ये मेरी ही मृगतृष्णा है...
जो तुम्हारे....मुझमे होने के बावज़ूद....
ढूंढती रही तुम्हें...कहीं बाहर....
जबकि तुम तो सदा से थे....मेरे ही अंदर...
मेरे ही अंदर....कहीं गहरें में...पर मेरे ही अंदर...
और मैं...थी गुम...मृगमरीचिका में...
................................................'तरुणा'.....!!!




Thursday, March 28, 2013

ऐ अज़नबी......


कुछ दिन हुए हमें मिले हुए....
इससे पहले तो हम अज़नबी थे....
कुछ तुमसे  रिश्ते यूँ जुड़ गए....
जैसे तुम मेरे लिए ख़ुदी थे.....

मेरी साँसों का....हर एक तार.....
हर घड़ी करता  हैं....तेरी पुकार....
एहसास हर ओर अब....तुम्हारा है....
दिल मेरा खुद से ही.....बंजारा है....
हर ज़ज्बात अब तक क्यूँ.....राख़ बुझी थे....
इससे पहले तो हम...अज़नबी थे...

अब विरह की आग में जलती हूँ मैं....
बिन डोर की पतंग सी...उड़ती हूँ मैं...
गिरूँ तो वहीँ तुम्हारी आगोश में....
शब्द बन जाऊँ इस रिश्ता-ए-ख़ामोश में...
मन वीणा के तार की धड़कन...अनसुनी थे....
इससे पहले तो हम...अज़नबी थे....

...........................................तरुणा....||

Wednesday, March 20, 2013

वो एक तस्वीर....


वो एक तस्वीर....
जो बनाई थी...हमने मिल-जुल के...
कुछ रंग भरे तुमने....कुछ मैंने....
खूबसूरत...सतरंगी....रंग....
इन्द्रधनुषी...चमक लिए हुए....
चटकीले.....चमकीले.....
सारी क़ायनात से...समेट कर...
कुछ अक्स तुमने बनाए..कुछ मैंने सँवारे...
उन आड़ी तिरछी रेखाओं से...
मोहब्बत के नक्श...उकेरें हमने...
तस्वीर बनाते रहे...रंग भरते रहे...
रोज़-रोज़....नए-नए....अनोखे...
मुक़म्मल हो ही जाती वो...मोहब्बत भरी तस्वीर...
अचानक...तुमने अपने हिस्से के रंग...
समेटने...कर दिए शुरू....
हर अक्स से....हर नक्श से....
वो चित्र तो... वैसे भी पूरा न होता...जो...
एक रेखा भी..मिट जाती..कहीं से....
कुछ भी तो न था..उसमे..जो...
बनाया तुमने अलग...या रंगा मैंने अकेले...
हर फ़्रेम में थी...हमारी सांझी...कला...
हुनर हम दोनों का....
पर..अब वो हर कोण...अधूरा है....
हर नक्श है...अतृप्त...प्यासा...बेरंग...बेज़ान....
क्या मिला तुमको...मिटा कर...वो रंग...
क्या कर पाओगे..कभी पूरा..उस चित्र को....
अपने आधे-अधूरे....रंगों से....
या मैं...बना पाऊँगी...अपनी अधूरी कला से...
वो मुक़म्मल तस्वीर...फिर से...
इस ब्रश से...इन कागज़ों पर....दिल पर...
रहेंगें....हम दोनों ही अधूरे....ता-उम्र...अब...
जीवन भर..वो मोहब्बत की तस्वीर..भी...
वीरानी के गीत गाएगी...अपने अधूरे रंगों से....
हमको तडपायेगी...पर पूरी न हो पाएगी...
वो अधूरी तस्वीर.....अब...कभी भी.....
.....................................................'तरुणा'...!!!

Thursday, March 14, 2013

मेरा हर लम्हा.....


इस लम्हे को याद करूँ.....
जब तुम हो बहुत दूर.....
या बात करूँ...उन घड़ियों की.....
जब हर पल साथ थे...तुम मेरे...
याद करती हूँ...तो मिल जाती हैं....
मेरे तपते तन को....जैसे छाया घनी.....
मेरे बरसों से...ज़ख्मी मन को...जैसे..
मिल गया हो मरहम..अचानक...
किन पलों को जिऊँ मैं...बताओ मुझको...
खुशियों से भर लूँ....जीवन को....
या मर जाऊँ...उन लम्हों में...खुशी से....
तुम ही तो हो....मेरे हर लम्हों में...
मेरे जीवन में...हर पल साथ...
किसी को दिखतें नहीं हो भले...तुम...
पर साथ तो न छोड़ा हैं...तुमने....
अब भी हर पल...साथ चलते हो....
कोई भी रास्ता...मंज़िल...या हो रहगुज़र.....
तुम हो हर पल.....यहीं...
मेरे हर....लम्हों में....
चाहे हो जुदाई के ये पल...
याकि...वो मिलन की घड़ी...
मेरा हर लम्हा....तुम्हारी रोशनी से उज़ागर है..
...........................................'तरुणा'

Wednesday, March 6, 2013

प्यार 'मैं' से.....


एक दिन पूछा उन्होंने....मुझसे....
किसे चाहती हो ज्यादा.....
ख़ुद को....या मुझ को....
मैं क्या कहती...क्या उत्तर देती...???
कैसे बतलाती ये राज़...उनको...
कि मैं तो मर चुकी हूँ...कबकी...
बस तेरे प्यार को ही जीती हूँ...अब...
कि मैं खो चुकी हूँ...खुद को....
सारे चिन्ह और ख़ूबियाँ मेरी...
कब और कहाँ खो गई...नहीं जानती मैं...
अब मैं हूँ....क्यूँकि तुम हो...
जो सीखा अब तक...भूल गई हूँ...
जानते हैं सब मुझे..कि जानती हूँ तुमको मैं...
तुम्हारे होने से...मैं हूँ...
लोग लेते हैं...नाम मेरा....
क्यूँकि तुम्हें जानती हूँ...मैं...
अपनी सारी ताक़त..गवा चुकी हूँ...मैं...
पर हूँ मज़बूत...तुम्हारे बल से...मैं..
अब...मैं स्वयं को चाहती हूँ...
बहुत ज्यादा...तुम से भी ज्यादा...
क्यूँकि...मैं 'मैं' नहीं हूँ...'तुम' हो....
और मैं प्यार करती हूँ 'मैं' से....
क्यूँकि.....'मैं' बन चुकी हूँ 'तुम'....
बस 'तुम'....सिर्फ 'तुम'....
..................................................'तरुणा'....!!!

Saturday, March 2, 2013

वो आख़िरी साँस....






नहीं चाहते मेरा...इंतज़ार करना....
न करो कोई.....फ़िक्र नहीं...
प्यार मेरा न समझ....आता है तुम्हे....
छोड़ जाओ...न करो जिक्र भी......
नहीं चाहती...कोई झूठा वादा तुमसे....
तुम तय करो...अपने रास्तों को.....
भरो..उड़ाने नए आसमानों पर....
याद करते रहो...हज़ारों...अफसानों को....
गुनगुनातें रहो...नग्में अंजानो को...
जिसका साथ चाहो...जिसकी राह चुनो......
जिसके प्यार के...ख्व़ाब बुनो.....
मुझे कोई...परवाह नहीं....
अनगिनत चाहें...अपनी साँसों में भर लो....
बस...मुझसे एक वादा...तो कर लो....
चाहे...पूरी ज़िंदगी मेरा ख्व़ाब न देखो...
मेरी राह न...ताको.....
मेरे नग्में न...गुनगुनाओ.....
मेरी तस्वीर को सीने से...न लगाओ...
मुझे अपनी हमराह...न बनाओ....
न लो...मेरे नाम की एक भी...साँस....
पर बस...इतना दिला दो...विश्वास....
मुझे अपनी...वो आख़िरी साँस...दोगे...
पहली साँस...ली थी जब...मैं थी न कहीं...
दूसरी...तीसरी....चौथी....साँस...न चाहिए....
ले लो....दूसरों के नाम....से...
मुझे...तो चाहिए...वो एक आख़िरी.....साँस...
जो..सिर्फ मेरी हो...फिर..और किसी की नहीं...
खड़ा पाओगे....तुम मुझे....वहीँ....
बस वहीँ....हमेशा हमेशा के लिए.....
तुमको अपना...बनाने को.....
उस आख़िरी पल में....आख़िरी साँस में.....
......................................................'तरुणा'.....!!!