Wednesday, January 30, 2013

मेरी कैद में....


क़ैद कर लिया है...मैंने तुमको....
अपने अन्दर...कहीं भीतर....
अपनी क़लम में....अपने शब्दों में...
अपनी कविताओं और लेखनी में....
हर रोज़....हर घड़ी....हर पल....
उकेरूँगी तुम्हें....कागज़ पर....
कभी निखारूँगी....कभी सवारूँगी....
कभी रूठूँगी....कभी सताऊँगी.....
कभी नाराज़ कर दूँगी...फिर खुद ही मनाऊँगी....
हर बात मानूँगी....तुम्हारी कभी....
तो एक भी  न सुनूँगी....कभी....
लडूँगी....झगडूंगी....कभी...यूँ ही...
या प्यार से सराबोर कर दूँगी...यूँ ही...
अपने सारे भाव...तुम पर उड़ेलूगी....
सारा प्यार...तुम पर न्योच्छावर कर दूँगी....
पर जाने न दूँगी...तुम्हें कहीं...
आज़ाद न करूँगी...तुम्हें कभी....
अपनी क़ैद से...
अपने प्यार की क़ैद से...
और तुम रहोगे हमेशा...मेरी क़ैद में...
छलकोगें....बहोगें...दिखोगें...सबको....
पर रहोगे मेरी ही क़ैद में..ही...
मेरे प्यार की हथकड़ियों और बेड़ियों को पहने....
सिर्फ़ मेरी क़ैद में.....
.........................................................'तरुणा'....!!!

Friday, January 25, 2013

26 जनवरी.....


आ गई फिर से 26 जनवरी....
एक और प्रतीक हमारे लोकतंत्र का...गणतंत्र का....
मनाओ त्यौहार.....सजाओ बाज़ार.....
दिखाओ तो....जरा सा उत्साह....
क्यूँ नहीं...दिखा पा रहे हो...
क्या कहा...नहीं मना पाओगें ख़ुशियाँ.....
तो कारण खोजो....ढूँढो खोए हुए भारत को....
उसकी आत्मा को...जो दबी कुचली पड़ी है...
कहीं हमारे ही क़दमों तले...कहीं राख़ बनी हैं...
या धूल में मिल चुकी हैं...हमारे पैरों से ही...
करो कुछ विचार...कुछ तो इलाज़ सोचो....
क्यूँ आत्मा मर गई हैं.....इसकी....
या जीवित हैं अभी तक...शायद मृतप्राय है..अब तक...
शायद बच जाए.....कर लो उपचार...
क्यूँ हैं हम इतने बिचारे...इतने लाचार.....
अपने रहनुमाओं के हाथों....लुटे-पिटे.....

करो कुछ तो....विचार....
दो अपनी संभावनाओं को..जरा सा विस्तार....
झाँकों अपने दिलों में...गहरें तक...
बदलो समय के साथ...वरना....
याद रखो...ये समाज़ में फ़ैला हुआ कुष्ठ.....
ये संकीर्णता...छल...हमें ही निगल जाएगा....
बातें मत करो...सिर्फ़ अपने अधिकारों की.....
कुछ तो याद करो...अपने कर्तव्यों की....
मानवता का करो तो विस्तार जरा सा....
कब तक ये लूट-खसोट..चोरी..डकैती...बलात्कार...
के सुन सुन के समाचार.....
कोसते रहोगे...व्यवस्था को...
अपनी लाचार अवस्था को....

क्या हम नहीं हैं..जरा भी जिम्मेदार...
अपनी ही गिरती अवस्था के...हालात के...
मत लगने दो....हिंसा...झूठ...छल...कपट का बाज़ार....
जब हम ही नहीं...इनका सौदा करेंगे....??
तो कैसे ये बाज़ार चलेंगे...??
न होंगे खरीदार जब..इन दूषित भावनाओं के....
तो क्या नहीं आएगा बदलाव...हमारी कामनाओं में...
हम बदलेंगे तो बदलेगा...समाज़ भी....
और आगे बढेगा हमारा.....ये देश भी...
अब भी सोये रहें तो क्या पाओगें...??
पहल करो....उठाओ परचम...बदलो स्वयं को....
वातावरण शुद्ध हो जाएगा...ले पाओगे खुली हवा में साँस...
आज़ादी की साँस....महकता वातावरण......
अपना ये देश....अपना ये चमन.....

...........................................................'तरुणा'.....!!!




Monday, January 21, 2013

मेरे दिल का कोना.....


समय कुछ भी...कहानी कहे...
अनकही...अनजानी कहे.......
जिंदगी सुनाए कुछ भी फ़ैसला....
मेरे हक़ में....या मेरे ख़िलाफ
तुम प्यार करो....या चाहे दो जितना ही दर्द...
पास आओ...या दूर हो कितने भी ए हमदर्द...
भली-भांति एक बात...जानती हूँ मैं...
कि मेरे दिल के एक कोने में...तुम रहोगे सदा
हमेशा-हमेशा.............सदा.......सर्वदा....

एक दिन उन्होंने हँस के पूछा....
और...बाकी में....
कौन रहता है....बाक़ी हिस्सों में....
क्या समझाऊँ उनको...कैसे बतलाऊँ उन्हें...
कि मेरा दिल...बहुत बड़ा है....
पर इसमें कोई जगह...न खाली है.....
एक हिस्से में...रहतें हैं..वो...
और बाक़ी में....कहीं उनकी याद....
कहीं उनका ख़याल....कहीं दर्द...
कहीं उनकी..जगाई प्यास...
तो कहीं महकती हुई...साँस....
कहीं तो तड़प...कसक....और प्यार ने डाला डेरा है...
दिल का कोई भी कोना...न मेरा है...
उनकी आरज़ू ...तमन्ना...चाहत ने...
ऐसे जगह बनाई है.....
लगता है मुझको...कभी कभी...
कि मेरी रूह भी..इस दिल के लिए पराई है...

कहने को तो दिल..बहुत बड़ा था मेरा....
पर ठूंस ठूंस कर...भरीं हैं...ये सब...
और कई तो...अभी भी प्रतीक्षित हैं...
उनकी जुदाई...बेरुख़ी...अलगाव...को तो...
कहीं भी जगह..न मिल पाई है....
उनकी बहुत सी चीज़ें....
अभी भी...क़तार में हैं...
और वो पूछतें हैं...मुझसे...
बाक़ी कौन कौन से हिस्से....
दूसरों के...प्यार में हैं.....
दूसरों के.....प्यार में हैं....
..................................तरुणा'....||

Friday, January 18, 2013

वो मदमस्त आवाज़......


तुम्हारी वो मदमस्त....आवाज़...
पड़ती है...जब भी मेरे कानों में....
मुझको पीर...देती हैं....
कहीं गहरें तक...चीर देती हैं...
मैं...हो जाती हूँ...खुद से अलग....
इस सारे जहाँ से....विलग....
चल पड़ती हूँ...उस आवाज़ के पीछे पीछे....
उस भ्रम को..विश्वास से सींचे....
पूरे जहाँ में...मैं घूम आती हूँ....
तुमको फिर भी कहीं न पाती हूँ....
होता है जब...तुम्हारे न होने का एहसास...
दिलाती हूँ बार बार...मन को विश्वास...
की था ये केवल मेरा भ्रम....
न थे सत्य तुम...एक झूठ ज़ी रहें थे हम...
मन को विश्वास होने लगता है...धीरे धीरे....
ऐसे में फ़िर आ जाती है...तन्हाई को चीरे...
मैं फ़िर...ज़िस्म से अलग हो उठी हूँ....
इस दुनिया से..विलग हो चुकी हूँ...
चल पड़ी हूँ....उसी डगर में...
किसी अंजान से नगर में...
उसी आवाज़ के पीछे पीछे...
वही भ्रम पाले...उसी को सींचे....
दूर...बहुत दूर...सबसे दूर....
.........................................'तरुणा'.....!!!


Monday, January 14, 2013

तेरा ख़्याल.....


तुम परेशान न हो..इतना..छोड़ दो मुझे...सरे राह....
मैं सँभाल लूँगी...खुद को....यूँ पशेमा न हो....
न तो मैं बच्ची हूँ...न बूढ़ी...के सँभल न पाऊँ....
गिर के फिर...उठ खड़ी हूँगी...ये वादा है...मेरा....
कुछ तो परिपक्वता हैं...शायद..कुछ तो बची है...समझ....
इतनी नादां नही हूँ..न मैं नासमझ...तुम बढ़ जाओ...आगे को....
न बढ़ाना हाथ...कभी....मुझको जो ज़रूरत होगी...तो...
बुला लूँगी...किसी को....वो जो...
तेरी अनुपस्थिति में...बहुत ध्यान रखता हैं...मेरा...
जब नही होता है...तू...सहारा बनता है मेरा....
हर घड़ी...हर मुश्क़िल में साथ दिया उसने....
उसका ही हाथ थाम लूँगी...पुकारूँगी उसे...
वैसे तो आवाज़..लगाने की भी ज़रूरत न होगी...
मुझको उठाने..संभालने में उसे...दिक्कत न होगी...
तुमने जो दर्द दिया...तड़प...प्यास....जो कुछ भी...
वो मिटा देता है....हर कष्ट...हर ग़म मेरा ही...
मेरे साथ मर के भी ये जाएगा...
तेरा ख़्याल है वो...मुझको कभी न छोड़ेगा....
उस ख़्याल से ही....मैं काम चला लूँगी...अब..
तेरे दुख-दर्द को मिटा दूँगी मैं...अब...
तुझसे ज़्यादा तो अब तेरा ख़्याल प्यारा है...
अब यही तो मेरे जीवन का एक सहारा है....
बस एक सहारा....तेरा ख़्याल.....
तेरा ख़्याल.....सिर्फ़ तेरा ख़्याल.....
.................................................'तरुणा'...!!!

Tuesday, January 8, 2013

पुल.....


तुमने कितना पुकारा...???
कितनी आवाज़े लगाई...???
आ जाओ...पार करो...
इस मोहब्बत की...नदी को...
मना करती रही मैं...डूब जाऊँगी...
पर..इसे पार न कर पाऊँगी....
तुमने सिखाया है...मुझे...
डूबने का डर क्यूँ है...तुझे....??
उसका लुत्फ़ भी...लो....
थोड़ा ज़िंदगी को....तो जी लो....

फिर मिलकर बनाया....हमने एक पुल...
तुमने अपने किनारे से...मैने अपने....
पुल था हमारे..निर्माण की जादूगरी का...
एक अनोखा उदाहरण...हमारी कारीगरी का...
चलने लगे दोनो...उस पर...
तुम अपने किनारे से....मैं अपने छोर से...
और..बीच में...पहुँचते ही....
समेट लिया...तुमने अपना वो हिस्सा....
जैसे ख़त्म कर दोगे...आज ही वो किस्सा....

अब..ये पुल भरभराने लगा है...
टूटी हैं नींव...चरमराने लगा हैं....
मैं गिर रही हूँ...इस नदी में.....
तैरना आता नही....पुल टूट रहा है...
वापस कैसे जाऊँगी....????
मैं तो सच में...डूब जाऊँगी....
क्या तुमको नही था...ज़रा भी एहसास...
क़ि मिलके चले थे...साथ-साथ...

अगर डरते थे...तो आवाज़ें क्यूँ दी...???
गुरूर था कोई...तो बात क्यूँ की...???
मुझको जो डुबाना ही था....
इस पुल को गिराना ही था....
तो कह देते ऐसे ही....
मैं तो डूब जाती...वैसे ही...
तुम्हारे प्यार की नदी में...तुम्हारी गहरी आँखों में...
पर..कम से कम...धोखा तो न करते...
अपनी मोहब्बत का दम...यूँ तो न भरते....
अब...ये पुल गिर गया तो....
विश्वास...न जुड़ सका तो...
इस धोखे के गरल से...मैं तो मर जाऊँगी....
अब...उतनी सरल न मैं...रह पाऊँगी...
न रह पाऊँगी....उतनी सरल मैं...अब..
.............................................'तरुणा'...!!!

Saturday, January 5, 2013

तेरा गुनाह....


तड़प...तरस..कसकती रह...जीवन भर...यूँ ही...
सरे बाज़ार...तमाशा..बनवाती रह..अपना ही...

ताने सुन...गालियाँ खा..या सह जा..चाबुक़ भी..
तेरे गुनाह की...हर एक सज़ा...तो कम है ही....

गिरती रह दुनिया की निग़ाहों में...सरे राह ऐसे..
लोग कहतें रहें..दीवानी..पागल..या कुछ और भी...

उंगलियाँ उठती रहें....लोग हँसते रहें तुझ पर...
ज़ुर्म है ऐसा ही..क़ुसूर तेरा कुछ कम तो नहीं...

मारें पत्थर...या रुसवा करें....दुनिया में तुझे....
सज़ा जितनी भी मिलें..गुनाह कोई छोटा तो नहीं...

दोष बस...है ही तेरा....मोहब्बत जो की है तूने...
अब इससे बड़ा ज़ुर्म...इस ज़माने में और है नहीं...

तू पाएगी सज़ा...ज़िंदगी भर...अपने इस ज़ुर्म की...
हाँ..की हैं तूने मोहब्बत..मोहब्बत..और कुछ भी नहीं...

........................................................'तरुणा'...!!!

Wednesday, January 2, 2013

तुम ज़िन्दा हो.....


तुमने सही....इतनी तड़प....
अथाह पीड़ा और...नासूर सा दर्द....
और उस तकलीफ़ में....थी...
जीने की चाह भी.....
जीना चाहती हूँ....मैं....
पर अचानक...वो सब...
वो घृणित हादसा...वो तलवार सी बातें...
काट के रख गई....तुमको...
तन ज़ख्मी.....मन घायल.....
वीरानी आँखों में...न जाने कितनी...
जिस्म से टपकता....लहू तुम्हारा....
न जाने...कब...कैसे...हममें से....
हर एक के बदन का...हिस्सा बन गया....
तुम्हारी रूह...घर कर गई...हमारे जिस्मों में...
तुम्हारा बहता लहू....दौड़ने लगा...हमारी रगों में...
वो अथाह पीड़ा....नासूर सा दर्द...
उठने लगा...कहीं गहरे तक हमको....
चुभने लगा...हमारी अंतरात्मा में....
तुम तो खामोशी से बन गई...एक सितारा...
पर जी उठी...हमारी रूह में...सिर्फ तुम...
तुम थीं...अकेली..अब तक...
अब रोशन हो...हर एक जिस्म-औ-जाँ में...
तुम्हारी भयंकर पीड़ा...बहती है...हमारे जिस्मों में...
तुम्हारी चीखें...बन गई हैं...आवाज़ हमारी..अब..
तुम्हारी तड़प से कसकतें हैं...बदन हमारे...
तुम जिंदा हो....एक नहीं लाखों में....
हम सब में..अब तुम ही रहती हो...
है..वादा तुमसे....
जब तक ये चीख़ें पहुंचेंगी..न हर एक कान तक...
न सोने देंगे...हम किसी भी इंसान को...
न बैठने देंगे...चैन से...
इन हुकुमरानो को....
वादा है....हमारा तुमसे....
क्यूंकि अब तुम हर एक में जिंदा हो...
हर एक में....
............................................तरुणा||