क़ैद कर लिया
है...मैंने तुमको....
अपने
अन्दर...कहीं भीतर....
अपनी क़लम
में....अपने शब्दों में...
अपनी कविताओं और
लेखनी में....
हर रोज़....हर
घड़ी....हर पल....
उकेरूँगी
तुम्हें....कागज़ पर....
कभी
निखारूँगी....कभी सवारूँगी....
कभी
रूठूँगी....कभी सताऊँगी.....
कभी नाराज़ कर
दूँगी...फिर खुद ही मनाऊँगी....
हर बात
मानूँगी....तुम्हारी कभी....
तो एक भी न सुनूँगी....कभी....
लडूँगी....झगडूंगी....कभी...यूँ
ही...
या प्यार से
सराबोर कर दूँगी...यूँ ही...
अपने सारे
भाव...तुम पर उड़ेलूगी....
सारा प्यार...तुम
पर न्योच्छावर कर दूँगी....
पर जाने न
दूँगी...तुम्हें कहीं...
आज़ाद न
करूँगी...तुम्हें कभी....
अपनी क़ैद से...
अपने प्यार की
क़ैद से...
और तुम रहोगे
हमेशा...मेरी क़ैद में...
छलकोगें....बहोगें...दिखोगें...सबको....
पर रहोगे मेरी ही
क़ैद में..ही...
मेरे प्यार की
हथकड़ियों और बेड़ियों को पहने....
सिर्फ़ मेरी क़ैद
में.....
.........................................................'तरुणा'....!!!