जाने–जाँ
आप क्या मेहरबां हो गए...
एक
ज़र्रे से हम आसमां हो गए ;
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यूँ
महकने लगे जिस्मो-जां इश्क़ से ...
कल
थे गुल आज हम गुलसितां हो गए ;
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छू
गई वो नज़र उसकी ज़ादू भरी...
थम
गई उम्र हम नौजवां हो गए ;
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उसकी
आँखों ने की गुफ़्तगू इस तरह..
एक
पल में हमें सौ गुमां हो गए ;
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चल
दिए सब पता पूछ कर इश्क़ का..
और
हम इश्क़ की दास्ताँ हो गए ;
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मेरी
मंजिल मिलेगी मुझे किस तरह....
रास्ते
सब के सब बेनिशां हो गए ;
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इश्क़
की राह में ये अजूबा हुआ......
हम
थे फ़ानी ‘सदफ़’ जाँविदां हो गए...!!
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............................तरुणा मिश्रा ‘सदफ़’..!!!