Thursday, May 23, 2013

यूँ ही...चलते चलते.....




शाम की सीली हवा...और कुछ मौसम की नमी...
गीली रेत पे...टहलते-टहलते....कभी यूँ ही...
तू मेरे पास...बहुत पास...क्यूँ आ जाता है...?
हर इक ज़र्रें में...तू मुझको नज़र आता है...
तेरी सरगोशियां...चुपके से..कानों में कहतीं हैं कुछ...
बुझे दिल के दीप...मेरे हो जातें हैं खुश...
कभी झिड़की वो तेरी...तल्ख़ लहज़ा...वो तेरा...
होश उड़ा देता है...दिल धड़काता है मेरा....
कभी प्यार भरी...तेरी वो मदमाती बातें...
जैसे चाँद...उतर आया हो दिल में...हो मादक़ रातें...
क़दम बढ़ाती हूँ...तो फूल बिछा देतें हो...
पकड़ के हाथ मेरा...उसको दबा देतें हो....
अकेलेपन का एहसास...अब न होता है कभी....
तू मेरे साथ क़दम...बढ़ाता रहता है...यूँही...
ये हवाओं के थपेड़े हैं...या तूने लगाई है चपत....
तेरी बेसिरपैर की बातों में...मैं हो जाती हूँ मस्त...
यूँही चलते चलते.... जब बदन छू जाता है तेरा...
उखड़ने लगतीं हैं साँसे...बहक जाता है मन मेरा...
आज फ़िर टहलते वक़्त... मैं नहीं अकेली हूँ...
जिसको सुलझाया है तूने...मैं वही पहेली हूँ...
अब सुलझ गई हूँ...तो कभी मैं न उलझूंगी...
तेरे प्यार में जिऊंगी...और बस तुझको सोचूंगी...
आज फ़िर टहलते..... टहलते....
तू मिल गया फ़िर...राह में चलते..चलते...
राह में चलते..चलते....
....................................................'तरुणा'.....!!!











Saturday, May 18, 2013

ये घड़ियाँ....


रोज़ रोज़ ये घड़ियाँ...ठहर जातीं हैं....
उन पलों के इंतज़ार में...जब मिलते थे...हम तुम..
वक़्त काटे नहीं कटता मेरा..उन लम्हों की याद में...
अज़ीब सी बैचैनी...बढ़ती जाती है...
मैं.. ध्यान लगाने की कोशिश करती हूँ....
इधर-उधर के कामों में... होती हूँ असफ़ल..
कभी जी चाहता है...छिपा दूं...इन घड़ियों को कही...
कहीं अलमारियों की.. दराज़ों में....
न देख पाऊँ इनको...जहां से मैं...
न शोर पड़े टिक-टिक का कानो में...
निग़ाहें बार-बार..चोरी-छिपे...उठ जाती है..
जताती हूँ लापरवाही..जैसे..न कोई फ़िक्र है..न परवाह..
और समय...सरकने लगता है...
निग़ाहें...गाहे-बगाहे...उठ ही जाती है...
बैचैनी मेरी...बदहवासी में..ढल जाती है...
बिन बात का गुस्सा.. झुंझलाहट.. हावी होती जाती है...
दिलासा देती हूँ... मैं ख़ुद को...
तुम व्यस्त होगे... पर भूल नहीं सकते मुझे...
ये तसल्ली भी... बहला नहीं पाती..मन को...
आँखें...छलक-छलक जाने को...आतुर...
और मैं.. छुपाए हूँ.. सीने में.. सौ तूफ़ानों को...
बीत जातें हैं...वो लम्हें ऐसे ही...
घड़ियाँ...फ़िर से दौड़ने...लगतीं हैं...
मैं..व्यस्त हो जातीं हूँ.. फ़िर उन्ही पलों की प्रतीक्षा में..
तुम्हारे इंतज़ार में... ये पल रोज़ ठहरते हैं...
पर ये चिर-प्रतीक्षित इंतज़ार... अब खत्म नहीं होता...
घड़ियाँ... रोज़ उन पलों में... रुकतीं हैं..
उनके बीतते ही... दौड़तीं हैं...
तुम्हारे इंतज़ार में... तुम्हरी प्रतीक्षा में...

हर रोज़... कई रोज़ से...
 
......................................................'तरुणा'...!!!

Saturday, May 11, 2013

तुम्हारा व्यक्तित्व.....


 
तुम को कागज़ पे ...क्या उतारूँ....??
कैसे उतारूँ.... ?
चाहे कितनी कोशिशें करूँ....
तुम्हारी मुस्कराहट....जैसे पीले पीले...
सरसों के फूलों की चादर...
दूर तक जहाँ देखो...खिलती है...मुस्कुरा कर...
बाते तेरी...उफ्फ ...क्या कहूँ मैं....
खनकती..ताज़गी भरी आवाज़ को कैसे लिखूं मैं....
जैसे...तपती गर्मी बाद....होती है बरसात....
उड़ती हैं सौंधी  ख़ुशबू...मिट्टी से दिन रात....
मासूमियत कुछ ऐसी..हैं तुझमे...
बच्चे के चेहरे...की मुस्कान सी....
प्यार तेरा लगे है यूँ...मस्ज़िद में होती अज़ान सी....
या ...बजतीं हैं घंटियाँ...जैसे किसी मंदिर सुनसान में...
कभी...वो अड़ियल सा रवैया...
कभी झुक जाना ...प्यार में...
मुझपे जादू सा है...करता...
प्यार हो...या रार में...
तुमको...बयाँ न कर सकूंगी...
पूरी तरह से...मैं कभी....
हो क्या तुम मेरे लिए...
किसी को न समझा सकूंगी कभी.....
बखान व्यक्त्तिव का तुम्हारे...
कर न पाएगी...कलम मेरी....
जानती हूँ....जो मैं दिल में...
लिख न पाएगी ये कभी....
कभी भी....
........................................'तरुणा'.....!!!