ये
ये क्या हुआ????
ये किसने दिल के
दरवाजे पे दस्तक
दी?
मेरे सूने जीवन
में हलचल की|
कौन है ये?
अंजाना, मगर जाना
पहचाना सा
कुछ अजनबी सा, कुछ
अपना सा
जिससे मिलके अहसास हुआ
मैं खुद में
कितनी तनहा थी,
अहसास अधूरेपन का हुआ
ये मन को
मेरे किसने छुआ?
दो भागों में, मैं
बँट गई हूँ
उफान में प्यार
के बहती हूँ|
क्या मैं डूब
ही इसमें जाऊंगी?
या पार उतरने
पाऊँगी?
क्या तोड़ दूँ
सारे बाँधों को?
चौतरफ़ा की दीवारों
को
पी लूँ क्या
मैं इस हाला
को?
इस प्यार से भरे
प्याला को?
झटक दूं सारे
बंधन को?
जी लूँ फिर
से मैं जीवन
को,
थी वजहें बहुत सी
उदासियों की
अब बेवजह मैं खुश
हो रही हूँ|
तोड़ के सारे
कवचो को
मैं नवरूप अब ले
रही हूँ|
अब सब कुछ
नया-नया सा
है,
मन के घावों
में कुछ रिसता
सा हैं|
ये किसने मुझे सहलाया
है?
खुद से परिचय
करवाया है?
फिर भी है
कुछ मुझे कसक
कुछ बाक़ी है अभी
झिझक
मैं असमंजस में अब
तक हूँ,
क्या खुद से
साक्षात्कार करूँ?
क्या खुद से
साक्षात्कार करूँ?
....................................तरुणा||