Saturday, August 13, 2016

गया कैसे...??


मुझको वो छोड़कर गया कैसे...
वो तो था हमसफ़र गया कैसे ;
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दिल पे क़ाबिज़ रहा जो बरसों से....
आज दिल से उतर गया कैसे ;
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मैंने जो उम्र भर समेटा था...
वो उजाला बिख़र गया कैसे ;
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वो जो इक पल जुदा न रहता था..
वो गया तो मगर गया कैसे ;
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ख्व़ाब में भी न था गुमां जिस पर
दुश्मनों के वो घर गया कैसे ;
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कोई ख़ूबी नज़र तो आई है...
वरना मुझ पर वो मर गया कैसे ;
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सिर्फ़ उस पर ही तो ये ज़ाहिर था...
राज़ आख़िर बिखर गया कैसे ;
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राब्ता गर नहीं था 'तरुणा' से....
मुझको छू कर गुज़र गया कैसे ..!!
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.......................................'तरुणा'...!!!



Wednesday, August 10, 2016

मेरी कहानियाँ...!!!


कितनी कहानियाँ ही मेरे साथ चल रही हैं...
पर छोड़ कर मुझे ही आगे निकल रही हैं ;
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कब तक चराग़ मेरा जल पाएगा यहाँ पर...
जो साथ थी हवाएँ पाला बदल रहीं हैं ;
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ये किस नज़र से उसने देखा मुझे कि मुझमे...
लाखों ही शम्में जैसे दिल में पिघल रही हैं ;
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मुश्किल की थी जो घड़ियाँ माँ बाप की दुआ से...
आने से पहले मुझ तक वो सारी टल रही हैं ;
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इतनी कशिश है मेरे महबूब में कि तौबा...
ख़ामोश हसरतें भी दिल में मचल रही हैं ;
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नफ़रत मिली थी जो भी वो प्यार से बदलकर...
तरुणा की चाहतें अब ग़ज़लों में ढल रही हैं..!!
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...........................................................’तरुणा’....!!!


Tuesday, August 2, 2016

राब्ता कैसे ?


वो रहा ग़ैर पर फ़िदा कैसे ..
उससे अब रक्खूँ राब्ता कैसे ;
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रूह को जब नहीं छुआ तो फिर..
प्यार में आएगा मज़ा कैसे ;
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इक मुसाफ़िर था रुक नहीं पाया..
जाम नज़रों से पी लिया कैसे ;
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जिसने मुझको कभी मिटाया था...
आज मुझपर वो मर मिटा कैसे ;
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उसको साबुत कभी नहीं देखा ...
टुकड़े टुकड़े में जी रहा कैसे ;
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पूरी शिद्दत से दिल मेरा तोड़ा ..
एक टुकड़ा ये फिर बचा कैसे ;
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मेरा होके भी वो नहीं मेरा...
उसको पाऊँ जरा जरा कैसे ;
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जो कभी आदमी न बन पाया...
सबको लगता है फिर ख़ुदा कैसे ;
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बागबाँ तो महक का दुश्मन था...
फूल गुलशन में फिर खिला कैसे ;
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मुझसे निस्बत न कोई रिश्ता था...
मेरा बन के वो फिर रहा कैसे ;
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जब मुख़ालिफ़ रही हवा तरुणा’..
फिर ये दीपक भला जला कैसे ..!!
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.....................................'तरुणा'....!!!