Sunday, January 5, 2014

मौसीकी ज़िंदगी की..... !!!!


















इक अज़ब सी मौसीकी.... मेरी ज़िंदगी में तारी रही...
हर ज़र्रे में गीत ढूंढने की...  मेरी आदत जारी रही....

वो हवा की सांय-सांय हो.... याके बारिश की रिमझिम...
बिज़ली के कड़कने में भी ... वही कारगुज़ारी रही... 

बरतन की खड़क के साथ गाना...के सुनना चांदनी की सदा...
तान सुनाने की हर इक शय की ... अपनी ही बारी रही....

वो शमा का पिघलना हो के.. छलकना आंसूओं का हो...
दिल के धड़कने में सब की ... ही रायशुमारी रही....

गुंजन भवरों की हो .. या झरनों की हो थिरकन...
ज़ेहन-ओ-ज़िगर पे मेरे .... हर वक़्त इक खुमारी रही...

बसते हैं कितने ही नग्में... 'तरु' की हर नफ़स में....
इनके दम से मुश्किलात... ज़िंदगी की हारी रही...
(नफ़स-सांस)

....................................................................'तरुणा'... !!!!


Ik azab si mausiki ....... meri zindgi me taari rahi....
Har zarre me geet dhundhne ki.... meri aadat jaari rahi..

Vo hawa ki saany-saany ho... yake baarish ki rimjhim...
Bijali ke kadakne me bhi ... vahi kaarguzaari rahi...

Bartan ki khadak ke saath gana.... ke sun'na chaandni ki sada..
Taan sunane ki har ik shay ki ... apni hi baari rahi...

Vo shama ka pighalna ho ke ... chhalakna aansuno ka ho..
Dil ke dhadakne me sab ki ... hi rayshumaari rahi...

Gunjan bhawron ki ho... ya jharno ki ho thirkan.... 
Zehan-o-jigar pe mere ... har waqt ik khumaari rahi..

Baste hain kitne hi nagme .. 'Taru' ki har nafas me ...
Inke dam se mushqilaat ... zindgi ki haari rahi.....
(nafas-breadth)

....................................................................... 'Taruna'... !!!







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